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________________ ( ४० ) पाणिः पणायतेः पूजाकर्मणः । प्रगृह्य पाणी देवान्पूजयन्ति । तस्य वयं प्रसवे याम उर्वोः।' 'देवोऽनयत्सविता' ऋग्वेद (२, ३३, ६) का प्रथम पाद है। C, के लिपिकार को उत्तरपाद याद था अतः उसने प्रथम पाद को लिखकर उत्तरपाद को ही लिख डाला। परिणाम स्वरूप C, प्रति में 'कल्याणापाणि .....पूजयन्ति' लुप्त हो गया। महाभारत उद्योग (१२७, २६ ) 'वश्येन्द्रियं जितामात्यम्' पाठ है। (१२७, २२ के 'विजितात्मा' और (१२७, २७ ) के 'अजितात्मा' की स्मृति से K, D, T, G, F. प्रतियों में 'वश्येन्द्रियं जितात्मानम्' पाठ हो गया। (११) ध्वनि अथवा उच्चारण से पृथ्वीराज रासो की कई प्रतियों में अनुनासिकता का प्रयोग बहुत मिलता है जैसे नाम, राम .. ... यह इस लिए हो सकता है कि इन प्रसियों के लिपिकार की ध्वनि में अनुनासिकता होगी । इसी प्रकार कई प्रतियों में 'व', 'ब' का भेद बहुत कम होता है - कई प्रतियों में केवल 'व' मिलता है और कई में केवल 'ब' । बंगाली में 'व' नहीं इसलिए बंगालियों द्वारा लिखित संस्कृत भाषा में भी 'ब' का प्रयोग होता है, 'झ' का उच्चारण कई प्रदेशों में 'ग्य' के समान है, अत: कई प्रतियों में इसके स्थान पर 'ग्य' मिलता है जैसे—तुलसी रामायण ( १, १७ ) ज्ञान, प्रति नं० १,२, ३ में ग्यान है। (१२) भाषा की अनियमितता से प्राकृत, अपभ्रंश, हिंदी आदि भाषाएं इतनी नियमित नहीं हैं जितनी संस्कृत । अत: इन की प्रतियों में वर्ण विन्यास समान रूप से नहीं मिलता-अर्थात् एक ही शब्द भिन्न मिन्न प्रकार से लिखा जाता है। उदाहरण—तुलसी गमायण (१ । २२० । १) यहु, वह, येह; (१ । २२८ । १) दुइ, दोउ; (२। ५०) दूमर, दूसरि; ( २ । ११५ । १ ) सुना एउ, सुनायेहु, सुनायेउ । (१३) भाषा-व्यत्यय हिन्दी भाषा की प्रतियों में मूल में प्रयुक्त संस्कृत शब्दों का प्रांतीय तथा तद्भव रूप मिलता है। उदाहरण—तुलसी रामायण (१ । १०, 'ग्राम्य', ४, ५ में प्राम'; (३।१०।१०) 'कमारी,' ७ में 'कुंआरी'; अादि । Aho! Shrutgyanam
SR No.034193
Book TitleBharatiya Sampadan Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulraj Jain
PublisherJain Vidya Bhavan
Publication Year1999
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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