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________________ ( ३६ ) उदाहरण-पंचतंत्र ( १, ४) 'महिलारोप्यं नाम नगरम्', A प्रति में 'प्रमदारोप्यं नाम नगरप' । महाभारत आदि पर्व' में रोष, कोप, क्रोध, ऋषि, मुनि; द्विज, विप्र; नरेश्वर, नरोत्तम, नराधिप, नरर्षभ; उवाच तदनंतरं, पुनरेवाभ्यभाषत; नि:श्वसंतं या नागं, श्वसंतमिव पन्नगम् इत्यादि का व्यत्यय ।। ___ इसी प्रकार विपरीतार्थ राब्दांतरन्यास भी हो सकता है। (८) हाशिए के शब्दों, टिप्पणों आदि का मूलपाठ में समावेश पढ़ते समय पाठक या शोधक अपनी प्रति के हाशिए में टिप्पण, अवतरण आदि लिख लेते थे। ऐसी प्रति को आदर्श मानकर लिखने वाला इनको भी मूलपाठ का अंग समझ कर पुस्तक में ही लिख सकता है। उदाहरण-संदेशरासक की प्रति ( नं० १८१-८२ पूना की भांडारकर ओरियंटल रिसर्च इन्स्टिच्यूट ) में कुछ छन्दों की परिभाषाएं मूल पाठ में ही लिखी हैं। हरिषेण विरचित धम्मपरिक्खा की अम्बाले वाली प्रति' में शब्दार्थों को मूल पाठ में मिला दिया है जो इस रचना की अन्य प्रतियों में नहीं हैं । संभव है यह हाशिए आदि सेही मूल पंक्ति में आए हों। ___ (९) वाक्य के अन्य शब्दों के प्रभाव से किसी शब्द के रूप में परिवर्तन हो जाता है। उदाहरण-महाभारत आदि० (६६, ८ ) 'पाहूय दानं कन्यानां गुणवद्भ्यः स्मृतं बुधैः ।' T, प्रति में 'बुधैः' के प्रभाव से 'गुणवद्भिः' है । रामायण' ( १, १२, ८) 'त्वं गतिर्हि मतो मम', As में 'हि मतिर्मम । ( १, १६, २) 'वृतः शतसहस्रेण वानराणां तरस्विनाम्, A, (K) में 'सइलेश्व' पाठ है, जो 'वानराणां' के बहुवचन के प्रभाव से विकृत हुआ है। (१०) विचार-विभ्रम से भपने सामने के लेख्य पाठ को देख कर लिपिकार को कोई अन्य बात सूझ जाती है और वह लेख्य पाठ को भूल कर अपने विचारों को लिख देता है। उदाहरण-निरक्त ( २, २६ ) देवोऽनयत्सविता । मुपाणि: कल्याणपाणिः। १- भूमिका पृ० ३७ । २-इसके परिचय के लिए देखो 'जैन विद्या' अंक २, पृ० ५५-६२ [हिंदी] : ३-रामायण के उदाहरण कात्र से उद्धृत किए हैं। Aho ! Shrutgyanam
SR No.034193
Book TitleBharatiya Sampadan Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulraj Jain
PublisherJain Vidya Bhavan
Publication Year1999
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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