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________________ फलभी विपरीत होता है इससे भूमिकी परीक्षा करनी ॥ ४० ।। जो भूमि चौकोरहो वह महान अन्न आदिको देती है, जिसकी हाथीके| समान कान्तिहो वह महान् धन देती है, जो भूमि सिंहके तुल्य है वह गुणवान् पुत्रांको देती है, जो वृष (बैल ) के समान है वह पशुओंकी व वृद्धिको देती है ॥ ११ ॥ जो भूमि वृत्त वा भद्रपीठके तुल्य है वह श्रेष्ठ धनके देनेवाली होती है और जिस भूमिका त्रिशूल के समान आकार । है उस भूमिमें शर वीरोंकी उत्पत्ति होती है और वह धन और सुख देनेवाली होती है | और जिसकी कांति लिंगकी समान है वह संन्यासियोंके लिये श्रेष्ठ है और जो प्रासादकी ध्वजाके तुल्य है वह प्रतिष्ठाकी उन्नति करती है और जो कुंभके समान है वह धनकी बढ़ाने ला चतुरस्रा महाधन्या द्विपामा धनदायिनी। सिंहाभा सगुणान्पुत्रान्वृपामा पशुवृद्धिदा ॥४१॥ वृत्ता सद्वित्तदा भूमिभद्रपीठनिभा र तथा । त्रिशूलरूपा वीराणामुत्पत्तिधनसौख्यदा ॥ ४२ ॥ लिङ्गामा लिङ्गिनां श्रेष्ठा प्रासादध्वजसन्निभा । पदोन्नति प्रकुरुते कुम्भाभा धनवर्द्धिनी ॥ ४॥ त्रिकोणा शकटाकाग शूर्पव्यजनसन्निभा । क्रमेण सुतसौख्यार्थधर्महानिकरी स्मृता ॥४४॥मुरजा वंशहा सर्पमण्डूकाभा भयावहा । नैःस्वं खरानुकारा च मृत्युदाऽजगरान्विता ॥ ४५ ॥ चिपिटा पौरुपींना मुद्गराभा तथैव च। काकोलकनिभा तद्वदुःखशोकभयप्रदा ॥४६॥ वाली होती है ॥ ४३ ।। जो भूमि त्रिकोण और जिसका शकटके समान आकार हो और जो सुप, बीजनेके समान हो वह भूमि पुत्र और सुख और धमकी हानिको क्रमसे करती है ॥ १४ ॥ जो भूमि मुरजके समान है वह वंशका नाश करती है, जो सर्प मेंडकके समान है वह ||.भयको देती हे और खरके समान जिसका आकार है वह धनका नाश करती है और अजगरसे युक्त है वह मृत्युको देती है ॥ ४५ ॥ और जो भूमि चिपिटा वा मुद्ररके समान है वह पुरुषोंसे हीन रहती है और जो काक उलूकके तुल्य है वह दुःख शोक भयको देती है ॥ ४६॥
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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