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________________ "কউडिलि माया पीइ बंधू || संसार बेहिं पूरिनु लोगो ॥ बहु जोणि निवासिएहिं ॥ न य ते ताणं च सरणं च ॥ ४३ ॥ संसारमा रहेला ने घणी योनीमां निवास करता माता, पीना अने बंधुओवडे आखो लोक भरेलोले ते तारुं त्राण तथा शरण नथी ॥ ४३ ॥ इक्को करे कम्मं ॥ इक्को प्रणुदवइ कय विवागं ॥ इक्को संसरइ जिन ॥ जर भरण चलग्गइ गुविलं ॥ ४४ ॥ एकलोज जीव कर्म करे छे, अने एकलोज जीव माठां करेलां पापना फलने भोगवे छे। अने एकलोज जीव जरा मरणवाला चतुर्गति रुप गहन वनमां भ छे ।। ४४ ।। नबेवणयं जम्मशमरणं ॥ नरएसु वेश्रणानं वा ॥ एआई संजरंतो | पंमिय मरणं मरिहामि ॥ ४५ ॥ उद्वेगना करनारा जन्म अने मरण छे, नरकनी गतिए अनेक वेदनाओ छे ए संभारतो पोहत मरण हूं मरीश ।। ४५ ।। वायं जम्मण मरणं ॥ तिरिएसु वेप्रणान वा ॥ एभाई संजरंतो ॥ पंक्रिय मरणं मरिदामि ॥ ४६ ॥ 0511531565152245202525400059215860
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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