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________________ म०प० पयत्रो. .45airaddha P4402004-02atapsar3445544444%AE एवो कोइ पण वाळना अपना मध्य भाग जेटलो प्रदेश नथी के जिहां संसारमा भमतो जीव नथी ज. न्म्यो ने नथी मुभो ॥ ३९ ॥ चुलसी किल लोए । जोमीणं पमुह सयसहस्साई ॥ किकंमिश्र इनो। अणंतखुनो समुप्पन्नो ॥४०॥ लोकने विषे खरेवर चोराशी लाख जीवा योनीयो छे ते माहे एकेक योनीमां जीव अनंतीवार उत्पन्न थयो छे ॥४०॥ नमहे तिरिश्रमि अ॥ मयाई वहुयाई बाल मरणाई॥ तो ताई संन्नरंतो ॥ पंमित्र मरसं मरीहामि ४१॥ उर्ध्व लोकने विषे, अधो लोकने विषे अने निर्वग लोकने विष घणा बाळ मरण पाम्यो तो ते मरणो ने संभारतो पीडत मरणे हु मरीश ॥ ४५ ॥ मायामिति (पया मे ॥ नाया नभिणी अपुन घायाय ।। एयाई संजरंतो॥ पंमिय मरणं मरीहामि ॥४॥ मागे माना. मारा पिना, भाइ, वेन, मागे पुत्र, मारी पुत्री वधांने मंभारना पंडित मरण हूं मरीश. da. 04 ॥४१॥
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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