SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥३०॥ ECO- Hare-000Saxswevert sentenantr प्रकारना समारंभ जेमणे एवा, प्रण भूवन रुप घरने धारण करवामां स्तंभ ममान, अने बळी आरंभ राहत, एवा सिद्धो मने शरण हो । २१ ॥ सिंघसरणेण नयनहेन, साहु ग जशिअ अगरान॥ मेश्णी मिलंत सुपसन, म तलिम नइ ॥ ३०॥ मिद्धना शरणवडे नय अने बार अंगरूप ब्रह्मना कारणभून माधुना गुणोनो उपज्यो छे अनुराग जेने, एवो भव्य पाणी पृथीने अडक्यु छे अति प्रशस्थ मस्तक जेनुं एवो थइ खां आ रीसे कहे ॥१०॥ जिअलोम बंधुणो कुग, सिंधुणो पारगा महानागा ॥ नाणाइ एहिं सिवसुरक, सागा माहुणो सरणं ॥ ३१ ॥ जीवलोकना बंध अने कुगति समुदना पार पामनार नहा भाग्यवाळा एवा. अने ज्ञानादिके करी मोक्ष सुखना गापनार माधुओ (मने) शरण हो ॥३१॥ कवलोगो परमोही, विनलमई सुअहरा जिणमयंमि ॥ आयरिय नवनाया, ते सवे साहुणो सरणं ॥ ३२॥ केवळीओ, परमावधिज्ञानवाला, विपुलमनि मनापर्यवज्ञानि, श्रुतधर तेपन जीनगनने विष रहे ला || आचार्यों अने उपाध्यायो ने मर्वे माधुओ मने शरण हो ॥ ३० ॥ मामा कक
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy