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________________ चनदस दस नव पुछी, ज्वाल सिक्कारसंगिलो जे भ ॥ जिलकप्पा हालंदिय, परिहारविसुद्ध साहु श्र ॥ ३३ ॥ चद पूर्वि दस पूर्वि अने नत्र पूर्वि, अने वळी वार अंग धरनार, अगियार अंग धरनार, जिनकल्पि यथालंदि, परिहारविशुद्धि चारीत्रवाला एवा साधुओ ॥ ३३ ॥ खीरासव महु आसव, संजिन सोश्र कुछ बुद्धि ॥ चारण वेनविपयाणु, सारिलो साहुलो सरणं ॥ ३४ ॥ क्षीराव अने मवाश्रव लब्धिवाळा, संभिन्न श्रोत लब्धिवाळा अने कोष्ट बुद्धिवाला, चारण मुनियो. |क्रिय लब्धिवाळा अने पदानुसारिलब्धिवाळा साधुओ मने शरण हो ॥ ३४ ॥ यि वर विरोदा, चिमहोदा पसंत मुदसोहा ॥ निमय गुण संदोहा, दयमोहा साहुगो सरणं ॥ ३५ ॥ तज्या छे वैर विरोध जेमणे, हमेशां अद्रोहि (शांत ) अतिशय शांत, मुखनी शोभावाळा, बहु मान क छे गुणना समुहनु जेमणे एवा, अने हण्यो छे मोह जेमणे एवा साधुओ (मने ) शरण हो. ॥ ३५ ॥ सिरोद दामा, श्रकामघामा निकामसुद कामा || सुपुरिस मणानिरामा, श्रायारामा मुसी सरणं ॥ ३६ ॥ खं 525042904 1905 125055
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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