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________________ .00pprepresent शके छे एवा. स्वाभाविक मुख जेमणे ग्रहण कई छाना उत्कृष्ट मोक्षवाळा मिन्द्रो (मने । शरण हो. ॥२०॥ पमिषीलिप पमिणीया, ममग्ग काणगि दह नव वीणा ॥ जोइसर सरणीपा, सिहा सरणं समरणीया ॥ २७॥ गगादिक शत्रुधोनो तिरस्कार कर्यो ? नेमण सवा बळी ममग्र ध्यानका अग्निा वायं छे भवन चीज जेमणे एना अने योगिश्वरोग आश्रय करवा योग्य अने भव्य प्राणी ओए स्मरण करवा याग्य एका मिद्धो मने शरण हो ॥२७॥ पावित्र परमाणंदा, गुगनीमंदा विदीन नवकंदा ॥ लहुई कय रविचंदा, लिहा सरगं खघिय दंदा ॥ २० ॥ पमाडयो छे आनंद जेमणे, अने गुणोपर पां. वळी नाग कों हे भवाग का जेमणे, अने केवळजानना प्रकाशवडे चंद्र अने मूर्यने यांचा प्रभावाना करीदीधा छे. की युद्ध आदि चलेशनो नाश कर्यो छे जेमणे एवा सिद्धो मने शरण हो ॥ २८ ॥ नवलपरम बना, उल्लदलंजा विमुक संरंजा ॥ जवण घर धरण खंना, सिहा सरणं निरारंजा | ॥ पाम्यु छ उत्कृष्ट ज्ञान जेमने एवा, वळी मोक्षरूप दुर्लभ लाभ मेळल्यो ले जेपणे एला. मुक्या छ भनेक 0411685%E52 - 25
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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