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________________ चउ० ॥ २९ ॥ Concep अरिहंतना शरणथी कर्मरुप मेलनी शुद्धिए पाम्युं छे अति शुद्ध सिद्धमां बहु मान जेणे एवो, अने तिथी नमेला मस्तकउपर कर्यो छे हस्तरूप कमळनो दोडों जेणे अर्थात् मस्तके अंजळी करी छे जेणे एवो हळवा कॉर्म जीव हर्ष सहित सिद्धनुं शरण कहे ॥ २३ ॥ कम्मरकय सिधा सादावित्र्य नारा दंसण समिधा ॥ सब लड़सिद्धा, ते सिद्धा हंतु मे सरणं ॥ २४ ॥ आठ कर्मनो क्षय करीने सिद्ध एला, अने स्वभाविक ज्ञान दर्शनंनी समृद्धिवाला वळी सर्व अर्थनी लओ मिद्ध यह छे जेमते ते सिद्धो मने शरण हो ॥ २४ ॥ तिलोअ मन्त्रयत्रा, परम पयचा अचिंत सामना ॥ मंगल सि पयचा, सिद्धा सरणं सुह पसन्ना ॥ २५ ॥ त्रण भुवनना मधाळे रहेला, अने परमपद एटले मोक्षमां रहेला बळी अनिय सामध्येवाला, अने मंगभूत सिद्ध पदमा रहेनार, अने अनंत सुखे करी एव सिद्धो मने शरण हो ॥ २८ ॥ मूलुकका अमूलरका सजोगिपचरका ॥ साहावित्त सुरका, सिद्धा सरणं परम मुस्का ।। २६ ।। मुळशी उखाडी नाख्या छे राग द्वेष रूप शत्रु जमणे अने अमृढ ळक्षवाळा, वळी केवळीओ नेमने देखी 5 से 6 ब पयन्नो. ॥ २९ ॥
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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