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________________ MPRA artsidd-trevrt.tips." 50%agentPA-Ap- C वयणा मरण नुवणं, निवावंता गुणेसु गवंता॥ जिअलोअ मुरंता, अरिहंता हुंतु मे सरणं ॥२०॥ (पोताना ) वचनामृतवडे जगतने शांति पमाडता, अने गुणोमां स्थापना, ( वळी ) जीव लोकनो उद्वार करता एवा अरिहंन मने शरण हो ॥२०॥ अञ्चप्रअ गुणवंते, नियजस ससहर पहासिअ दियते ॥ नियय मणाइ अगते, पमिवन्नो सरणमरिहंते ॥१॥ अति अद्भूत गुण गाजा, अने पोनाना यशरुप चंद्रवडे सर्व दिशाओना अंतने शोभाव्या छ एवा शाश्वत अनादि अनंत एवा अरिहनोने शरणपणे मे अंगिकार कर्या. ॥ २१ ॥ ननिय जर मरणाणं, समत्त पुस्कत्त सत्त सरणाणं ॥ तिहुयण जण सुदयाणं, अरिहंताणं नमो ताणं ॥१२॥ तज्यां छे जरा अने मरण जेमणे, अने वधा दुःखथी पीडाएला पाणीओने शरणभुत एवा, अने प्रण जगतना लोकने मुख आपनार एषा ते भरिहंतोने (म्हारो) नमस्कार हो ॥ २२ ॥ अरिहंत सरण मल सुद्धि, लाइ सुविसु सिइ बहुमाणो॥ पणयसिर रश्य कर कमल, सेहरो सहरिसं जणइ ॥ १३ ॥ t HSSimon SAFESPresIASISAHES
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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