SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चउ० ॥ २८ ॥ वीजाना मनमा रहेली वातने जाणनारा, अने योगिश्वरने महेंद्रने ध्यान करना वोम्य व धर्म कथाने कहेका योग्य एवा अरिहंत भगवान मने शरण हो ॥ १६ ॥ सङ्घजिश्रा महिंसा, अरदंता सच्चवयण मरदंता ॥ बंजय मरदंता, अरिहंता हुतु मे सरणं ॥ १७ ॥ सर्व जीवोनी दयापाळवी तेने योग्य, सत्य वचनने योग्य (बळी ) ब्रह्मचर्य पाळवाने योग्य एवा अरिहंतो मने शरण हो ॥ १७ ॥ नसरणमवसरिता, चनत्तीसं श्रइसए निसेवित्ता || धम्मच कहता, अरिहंता हुंतु मे सरणं ॥ १८ ॥ समवसरण देणीने चोकीस अतिशये करीने सहित धर्मः कथाने कहेता एवा अरिहंतो मने शारण हो ॥ १८ ॥ गाइ गिरा लेंगे, संदेदे देदिणं समं चित्ता ॥ तिहुल मणु सासंता, अरिहंता हुंतु मे सरणं ॥ १०७ ॥ एक वचने करी पाणी ओना अनेक संदेहोंने एक काळे छेड़ी नाखला अने ऋण जगनने शिक्षा ( उपदेश) आपता एवा अरिहंत भगवान मने शरण हो ॥ १९ ॥ 19855055 पयचो. २८॥
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy