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________________ -2000- 00000-6-250 रागहोसारीणं, हंता कमगाइ अरिहंता॥ विसय कसायारीणं, अरिहंता इंत में सरणं ॥१३॥ राग अने दुषरुप वैरीओना हणनार, अने आठ कर्मादिक शत्रुना हणनार, विषय कषायादिक वैरीओना हणनार एवा अरिहंत भगवान मने शरण हो. ॥ १३ ॥ रायसिरि मवकसित्ता, तव चरणं ऽचरं अणुचरिना ।। केवल सिरि मरहंता, अरिहंत्ता इंतु मे सरणं ॥ १४ ॥ राज्य लक्ष्मिने त्याग करीने दुष्कर तप अने चारित्रने सेवीने केवळ ज्ञान रूप लक्ष्मिने योग्य एवा अरिहंतो यने शरण हो ॥ १४ ॥ थुइ वंदण मरहंता, अमरिंदं नरिंद पूनमरहंता ।। सासय मुह मरहंता, अरिहंता हुंतु मम सरणं ॥१५॥ स्तुति अने वंदन करवाने योग्य एवा, इंद्र अने चक्रवतिनी पुजाने योग्य एवा, शाश्वत मुख पामयाने योग्य एवा अरिहंतो मने शरण हो ॥१५॥ . परमणगयं मुणंता, जोईद मईद काण मरहंता॥ . धम्मकदं अरहंता, अरिहंता इंतु मे सरणं ॥ १६ ॥ 52004006242400-24-aspaprsatasaarak - -254 MBResese -
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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