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________________ चउ० ॥२७॥ popathy জ 24 देवताना इंद्र, चक्रवर्ति राजा, अने मुनिश्वरोए बांदेला एवा महावीरस्वामिने वांदीने मोक्षने पमाडनार पयन्नो. सुंदर चउसरण नामनुं अध्ययन कहीश ॥ ९ ॥ चनसरण गमण डुक्कर, गरिहा सुकमागु मोयला चेव ॥ एस गयो अवश्यं, कायद्यो कुसलदेनत्ति ॥ १० ॥ चार सरण करवां, पाप कार्योंनी निंदा करवी अने निश्चे सुकृतनी अनुमोदना करवी आत्रण वस्तु मोक्षनुं कारण छे माटे निरंतर करवी ॥ १० ॥ 1 अरिहंत सिह साहू, केवलिकदिन सुहावदो धम्मो ॥ एए चनरो चनगर, हरणा सरणं लहइ धन्नो ॥ ११ ॥ अरिहंत, सिद्ध, साधु, अने केवळीए कहेलो सुख आपनार धर्म, आ चार शरण छे ने चार गतिने नाश करनार छे अने ते भाग्यशाली पुरुष पामेले ॥ ११ ॥ इसो जिराजति जरु, घरंत रोमंच कंचु करालो || पहरिसपणन म्मीसं, सीसंभि कयंजली नाइ ॥ १२ ॥ हवे ते पुरुष तिर्थंकरनी भक्तिना समुहे करी उछलनां स्वांटारूप वख्तरे करी भयंकर तेवो घणा हरख अने स्नेह सहित मस्तकने विषे वे हाथ जोडी आ प्रमाणे कहे ॥ १२ ॥ १२७॥
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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