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________________ श्रीजिनाय नमः श्रीपंचपरमेष्ठिन्यो नमः अथ श्रीधर्मपरीदानो रास. meer उहा. प्रथम जिनेश्वर पय नमुं, वृषन- लंडन जास॥ मरुदेवी नंदन पन, नानीराया | कुल तास ॥१॥ अढार वर्ष श्रारा तणां, सागर कोमा कोम ॥गयो धर्म वादयो जिणे, || तेह नमुं कर जोड ॥२॥श्रादि चारित्र आदरी, दीधो विधा धर्म ॥मन वच काया या Vवश करी, बेदी आठे कर्म ॥३॥ शिवपुरना वासी थया, अजरामर सुख मम॥ चोवीरो। तीर्थकरा, तेहने करुं प्रणाम ॥४॥ समरूं श्रुतदेवी सदा, थापे वचन विलास ।। तुष्टमान थाजो तमे, सफल फले मुज श्राश ॥५॥ गुरु दीवो गुरु देवता, गुरु तु| गमहोय ॥ गुरु कहीए माता पिता, गुरुथी अधिक न कोय ॥६॥ नवियण जावे सांजलो, धरमाधरम विचार ॥ वेष बुद्धि दूरे करी, परीक्षा करजो सार ॥ ७॥ उत्पत्ति तेदनी नयी
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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