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________________ उचलं, धर्मपरीक्षा रास॥वातो विविध प्रकारनी, श्राणी हरख उल्लास ॥॥ सांजलतां । सुख उपजे, मत नावे मन मांय॥ सौ जाणे साचो धरम, नाख्यो तिमज कहाय॥ ए॥ ढाल ली. देशी चोपाश्नी. जंबहीप जोयण एक लाख, जंबू वृदनी नामे साख ॥ असंख्याता सायर द्वीप कह्या, केवली जाख्या ते में लह्या ॥१॥ जंबूझीप मध्य मेरु जोय, सुदर्शन नामे ते होय ॥ बीजा पर्वत कह्या अनेक, मेरु लाख जोयणनो एक ॥२॥ तेथी दक्षिण दिश जणी कडं, नरत देत्र ते शास्त्रे लांपांचसें बवीश ने उ कला, बत्रीश सहस देश निरमला ॥३॥ साढा पचवीश आरज देश, बीजा अनारज कहीए लेश ॥ थारज धरम मरमनो जाण, म्लेट वर्णनो अनारज गण ॥४॥ पचास जोयणनो। परमाण, रूपामय वैताढ्य वखाण ॥ एहवो पर्वत शाश्वतो मान, श्वेत वर्ण ऊलहलते वान ॥५॥ पचवीश जोयण नूमि मांहि, उंचो पचीश जोयण उबांहिं ॥ दश जोयण ॥ डुंगरथी जोय, दक्षिण दिश जणी ते होय ॥६॥ कह्यां नगर मोटा पचास, नगर पुंठ कोम गाम निवास ॥ मुख्य पचास नगरमां जेह, वैजयंतपुर कहीए तेह -
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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