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________________ Aya卐卐卐卐卐y卐卐 तेने गुप्तद्वारथी लइ जइ घरना बारणा बंध करी, लज्जा मर्यादाने छोडी विषयनी प्रार्थना करवा लागी, तेथी परस्त्री सेवनमां नपुंसक समान सुदर्शन पोतानुं ब्रह्मचर्य रक्षण करवा बोल्यो के, हे भद्रे ! हुं तो नपुंसक हुँ माटे कोइना पासे वात करीश नहि, तुं ने हुंबे जणा जाणीये. आबु सांभळी विलखी थयेली कपिलाये तेने छोडी मुकवाथी सुदर्शन घरे गयो अने हवे पछी वगर विचार्य कोइने घरे जवु नहि तेवा प्रत्याख्यान कर्या... अन्यदा प्रस्तावे राजा पुरोहित सुदर्शन विगेरे उद्यानने विषे क्रीडा करवा गया, त्यारे कपिलाना साथे अभया राणि पण रथमां बेसी उद्यानने विषे गइ, त्यारबाद सुदर्शननी स्त्री मनोरमाने छ पुत्रो साथे देखी कपिलाये अभया राणीने पुछ्यु के, आ स्त्री कोनी छे, त्यारे राणीये कह्यु के आ सुदर्शननी स्त्री छे, ने आ तेना छ पुत्रो छे त्यारे कपिलाये कयुं के ते तो नपुंसक छे. आम कही पोतानी बनेली तमाम हकीकत कही, एटले अभया बोली तुं भोली छे, आणे तने कपट वृत्तिथी ठगी छे. ते त्हारा जेवीने माटे नपुंसक छे, पण पोतानी स्त्रीने माटे नथी, एम कही तेनी मश्करी करवाथी लज्जा पामेली कपिलाये का के, तुं बहु डाइ थाय छे ते ठीक, पण तुं तेना साथे क्रीडा करे त्यारे ज हारु डहापण हुं साचुं मार्नु, तेथी अभया राणीये अभिमानमां बगर विचार्य ज कही दीधुं के वाद राखजे हुं तेना साथे रमु त्यारे ज तुं मने साची अभया जाणजे, आवी रीते प्रतिज्ञा करी. जे मूर्ख माणसो वगर विचार्ये प्रतिज्ञा करे छे, ते पोताना आत्माने महा नुकशानना खाडामा उतारे छे. एकदा प्रस्तावे राजादि वर्ग वनने विषे क्रीडा करवा गया, त्यारे सुदर्शन राजानी आज्ञाथी शून्य घरने विषे 45卐卐y卐卐ज卐)
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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