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________________ | तेने मळे त्यारे साधुना आचारो पाळे, अने प्रियधर्मी पासत्थो मळे त्यारे तेना जेवो ज थाय छे, ते असंक्लिष्ट चित्तवाळो कहेवाय छे. २ हवे पांचमा यथा छंदना स्वरूपने देखाडे छे. श्रीमान् तीर्थंकर देवनी आज्ञा विना पोतानी इच्छाये प्रवर्तनारो अने पोतानी इच्छा मुजब प्ररूपणा करनारो, यथा तथा लवारो करनारो, यादृश तादृश उत्सूत्र बोलनारो प्ररूपनारो, अने पोताना स्वार्थनो ज उपदेश आपनारो, तथा पोतानी मति विकल्पित करी परजातिने विषे भळी जनारो, तेमज परनी वात विकथा करनारो, तथा पोताना उपकारी धर्माचार्यादिकनी अवहेलना करनारो, तथा आचार्य उपाध्यायादिकनी निंदा करनारो, तेम ज जेनाथी ज्ञानादिक पामे तेवा बहुश्रुतनी निंदा जुगुप्सा करनारो, त्रणे गारवमा मस्त रहेनारो, अने कारण विना विगयर्नु भक्षण करनारो, यथाछंदो कहेवाय छे. तेना पण अनेक भेदो कहेला छे. ए उपर कहेला पांचने श्रीजिनेश्वर महाराजना मतने विषे वंदन करवा लायक कहेला नथी, एटले अवंदनीय छ, पण जो ज्ञान-दर्शन-चारित्रनी सहाय माटे सेवन करेल होय तो तेने वंदनीय जाणवा. ५-२.ए प्रकारे पासत्थादिकर्नु स्वरूप बताव्यु, हवे त्रीजा भांगाने विषे प्रत्येक बुद्धोने गणेला छे, कारण के ज्यारे तेमने बोध थाय छे, त्यारे तेमनो आत्मा शुद्ध रूप्यमय एटले विवेकरूप, ज्ञानरूप, धर्मरूप, बनी जाय छे, पण ज्यां सुधी | एटले अंतर मुहर्त्त बेघडी सुधी द्रव्यलिंगने अंगीकार नथी करता, त्यां सुधी अशुद्ध रूप्य (वेषवाळा) कहेवाय छे ३ अने चोथा भांगाने विषे साधुओ शुद्ध रूप्यमय साधु धर्मना प्रतिपालन करनारा तथा शुद्ध मुद्रामय शुद्ध साधुवेषने धारण करनारा, कहेवाय छे, कारण के शुद्ध करणीथी तेमनो आत्मा शुद्ध रूप्यमय होय छे, अने द्रव्य भावथी शुद्ध वेषने धारण करवाथी | शुद्ध मुद्रा (छाप) मय कहेवाय छे. ४ माटे ए चारे भांगाओने विषे द्रव्य भावनी शुद्धि रूप चोथो भांगो होवाथी शुद्धताथी 45134543933
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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