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________________ 卐E चौमासी व्याख्यान ॥ काठीचार्नु स्वरूप॥ ॥ २ ॥ बतावे छे. शंका करनाराना साथे, कांक्षा करनाराना साथे तथा विचिकित्सा-व्यापन दर्शन-निन्हव-यथाछंदी-कुशीलीया वेषविडंबकादिना साथे आलाप संलाप करनार, पठन-पाठन करनार दर्शन कुशीलीयो कहेवाय छे.२. हवे त्रीजा चारित्र कुशीलीयाना स्वरूपने देखाडे छे. ज्योतिष जोनारो होय तथा निमित्त कहेनारो होय तथा अक्षरकर्म यंत्र मंत्र तंत्र भूतकर्म-बलीपींड उजाणी विगेरे करनारो होय तथा दानादिक सौभाग्य दौर्भाग्य करनारी जडीबुट्टी मूली विद्यारोहणादि पादलेप आंखअंजन चूर्ण स्वम विद्या चपटी वगाडवा आदिक त्रण काळर्नु कथन पोतानी जातिकुळ विज्ञानादि विगेरेपोताना स्वार्थ कार्यादिकने प्रगट प्रकाश करे तथा नख केश कापे शमारे तेम ज शरीरनी शोभा करे तथा वस्त्र पात्र दांडादिक घणा मूल्यवाळा सुंदर कोमल राखवानी वांछा राखे शिष्यादिक तेम ज परिग्रहने विषे विशेष ममत्व भाव करी गाढ अभिलाषा राखे तथा निष्कारण अपवाद पद दूषण सहित मार्गने प्रकाशित करी तेनुं सेवन करे ते त्रीजो चारित्र कुशील कहेवाय छे ३. हवे चोथा संसक्तना स्वरूपने बतावे छे. जो पोताने कोइ वैरागी मले तो वैरागी जेवो डोळ बतावे छे अने कोइ अनाचारी मले तो अनाचारी जेवो डोळ बतावे छे एटलं ज नहि पण ते समये ते तेना जेवो ज तन्मय बने छे. अगर मूळ उत्तर गुण दोष एकठा प्रवर्त्तावी देखाडे छे. तेना पण वे भेद कहेला छे.१ संक्लिष्टचित्त, प्राणातिपातादिक पांच आश्रवनो सेवनारो तथा ऋद्धिगारख, रसगारव, शातागारव, गारवसहित स्त्री तथा घरबारादिकना विषे अत्यंत आसक्त रहेलो, तथा निरंतर दुर्ध्यानने करनारो, तेमज पारकाना गुणने नहि सहन करनारो, अने मत्सरी, इत्यादि गुण युक्त होय ते संक्लिष्ट चित्तवाळो कहेवाय छे १ हवे बीजा असंक्लिष्ट चित्तवाळाने बतावे छे. पोताना आत्माने जे समये जेवो प्रसंग मळे त्यारे तेवो बनी जाय छे, एटले के प्रियधर्मी साधु ज्यारे
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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