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के चंद्रमा मनोहर छे, तो पण कमलिनीने तेनुं कांइपण प्रयोजन नथी, कारण के सूर्य विकाशिनी कमलिनी सूर्यनो उदय थाय त्यारे ज प्रफुल्लित थाय छे अने सूर्यना अस्त थवाथी पोते बीडाइ जाय छे, संकोचपणाने पामे छे अने मनोहर शीतल एवा चंद्रमानो उदय थाय, तो पण विकस्वर थती नथी, कारण के तेने तेनुं कांइपण प्रयोजन नथी, तेम ज त्यागीयो पण गमे तेवी स्त्री रूपादिकथी भरपूर भरेली होय, तो पण तेनुं प्रयोजन नहि होवाथी स्वीना सन्मुख पण जोता नथी, माटे | धन्य छ, मुनि महात्माओने. वळी विचार करवा लाग्यो के- . | एको रागिषु राजते प्रियतमादेहार्धधारी हरो, नीरागीषु जिनो विमुक्तललनासंगों न' यस्मात्पर। दुर्वारस्मरबाणपन्नगविषासक्तश्च मुग्धो जनः, शेषः कामविडंबितो हि विषयान् भोक्तुं न मोक्तुं क्षमः ॥१॥
भावार्थ:-रागियोने विष शिरोमणि एवो हर कहेता महादेव जे ते, पोतानी स्त्री पार्वतीये जेनु अंग सुशोभित करेलुं छे, ते शिवना खोळामां पार्वती बेठेली होवाथी तेनुं अर्ध शरीर रोकायेलं छे, एवो महादेव रागियोने विषे फक्त एकलो ज शोभे छे, अर्थात् ते महारागी छे. तेम ज जेणे मन वचन कायाना योगथी सर्वथा प्रकारे स्त्रीना संगने त्याग करेल छे, ते निरागीने विषे शिरोमणि फक्त एक ज जिनेश्वर महाराज शोभे छ, अर्थात् जेवी रीते जिनेश्वर महाराजाए राग-द्वेष-मोह-मद-काम-कषाय जीतेला छे, तेवी रीते बीजा कोइये जीतेला नथी, माटे ज सत्य निरागी एक ज जिनेश्वर महाराज छे. शिवाय दुःखे करीने वारण करी शकाय एबा, काम बाणरूपी सर्पना विषमय विषयना आवेशमा आसक्त थयेलो एवो, स्त्रीरक्त भोलो जनसमुदाय कारमी विडंबनाने पामी, विषयोने भोगवता, तेम ज त्याग करवा, शक्तिमान्
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49 M卐1941 354卐
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