SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 卐卐卐卐卐卐卐卐y अने दारुण तिर्यच नरकादिक गतिने पामी अनंत संसार रझली मरीश. माटे आ जीवोनो घात थतो बचाववो. वळी गुरु महाराजे मने आज्ञा करी छे, ते जीवोनो घात करवा माटे नहि, पण शुद्ध भूमि उपर परठववाने माटे ज करेल छे, हवे भूमि जीवाकुल होवाथी शुद्ध तो छ ज नहि, माटे ज हुँ म्हारा उदर रूपी शुद्ध भूमिमां परठवी दइ, गुरु महाराजनी आज्ञा साथे असंख्याता जीवोनो बचाव करूं. आवी शुद्ध भावना धारण करी सर्व जीवोने खमावी देव-गुरु-धर्मनुं शरण करी, ते कडवा तुंबडाना शाकने वापरी जइ, अनशन चार आहारना पच्चखाण कर्या, ते वापरताना साथे ज महात्माने रोमेरोम विष व्यापी जवाथी, शुभ लेश्यावाळा ते मुनि महात्मा तत्काल कालधर्मने पामी सर्वार्थ सिद्ध वैमानने विषे उत्पन्न थया. त्यारवाद धर्मघोषसूरि महाराजाये ते वात ज्ञानथी जाणीने लोकोना समक्ष नागश्रीनी निंदा करी. त्यारवाद समस्त वजन वर्गे तिरस्कार करी नागश्रीने घरना व्हार काढी मुकी, तेथी सर्व जग्याये रखडती भटकती कोइक वनमा दावानल लागवाथी तेमां बळी जइ, मुनि हत्याना पापथी मरीने छठी नरके गइ, त्यांथी एक एक भवो तिर्यचोना करी, समग्र नरकने विषे बबेवार गइ, अने एवी रीते अनंतकाल भटकी अनुक्रमे द्रौपदी थइ. विशेष वृत्तांत द्रौपदीनुं ज्ञातासूत्रथी जाणवू. ए प्रकारे निष्पापना आचरवारूप धर्म रुचि अणगारर्नु छटुं दृष्टांत पूर्ण थयु. ____ हवे पापकर्मना त्याग करवाथी जे वस्तु तत्त्वनु ज्ञान थाय छे, तेना उपर सातमु इलापुत्रनुं दृष्टान्त कहे छे.. अभिरूढो वंसग्गे मुणिपवरे दङकेवलं पत्तो, जो गिहवेसधरो,वि हु,,तमिलापुत्तं नमसामि ॥ १॥ भावार्थ:-जे नाटक करवा माटे वांसना अग्रभागने विषे चडी नवनवा खेलो खेलनारो इलापुत्र, गृहस्थने घरे 49卐Aya194999999
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy