________________ चौमासी व्याख्यान / काठीयार्नु खरूप॥ 卐卐卐999 घेर लइ गयो. आवो देखाव जोइ आ श्रेष्टि पैसापात्र छ एम जाणी कोइ काइ बोल्या नहि अने सर्वेये मौन धारण कयु. कयुं छे के जे माणसना पासे लक्ष्मी होय छे ते माणस गमे तेवी प्रकृतिनो अगर गमे तेवी परिणतिनो होय छे, तो पण लोको तेनी लक्ष्मीना तेजमा दबाइ जइ कांइ पण बोली शकता नथी. कयु छ के वंद्यते यदवंद्योऽपि, यदपूज्योऽपि पूज्यते / गम्यते यदगम्योऽपि स प्रभावो धनस्य तु // 1 // भावार्थ:-जे कारणथी नहि नमस्कार करवा लायक होय छे ते पण नमस्कार कराय छ, नहि पूजा करवा लायक होय छे ते पण पूजाय छ, नहि गमन करवा लायक होय छे तेना प्रत्ये पण गमन कराय छे. आ सर्व पैसानो ज प्रभाव छे वळी पण कयुं छे. वयोवृद्धास्तपोवृद्धा ये च वृद्धा बहुश्रुताः। सर्वे ते धनवृद्धस्य, द्वारे तिष्टन्ति किङ्कराः॥१॥ भावार्थ:-जे माणसो वयोवृद्ध एटले अवस्थाये करी वृद्ध होय ते, तथा तपस्याये करी शरीरनुं जेणे शोषण कयुं होय ते, तपोवृद्धा कहेवाय, एवा तपोवृद्ध होय ते, तथा बहुश्रुत वृद्ध होय एटले सिद्धांतना जाणवावाला बहुश्रुत होय तेवा बहुश्रुत वृद्धो ते सर्वे पैसा पात्र माणसना घरना आंगणाना द्वार-बारणा पासे भिक्षा मागनारा लोकोना पेठे किंकरा दासो थइने बेसे छे. आ सर्व पैसानो ज प्रभाव छे. पैसा पात्र माणसो व्यसनी होय तो पण निर्व्यसनी कहेवाय छे. अज्ञानी होय तो पण ज्ञानी कहेवाय छ, लोभी होय तो पण निर्लोभी कहेवाय छे, मूर्ख होय तो पण डाह्यो कहेवाय छे, असत्यवादी होय तो पण सत्यवादी कहेवाय छे, निर्गुणी होय तो पण गुणी कहेवाय छे, अंध होय छे तो पण देखतो कहेवाय छे, शठ 4333349Ay!