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वांचो! वांचो !!
वांचो!!!
निवेदन सुज्ञ वाचकगण, आ चोमासी व्याख्यान-मूलग्रंथना कर्ता श्रीमान् क्षमाकल्याणिकजी महाराजा छे, तेमणे संक्षेपमां आ ग्रंथ मूलमां बनावेल छे, तेने विषे काइक वधारा साथे में तेनुं भाषांतर देवनागरी लिपिमां तैयार कयु छे, अने काइक विवेचन, कांइक बोध, अने दृष्टान्तो विगेरे वधार्या छे, तेमज मूलमा जे दृष्टान्तो संक्षेपमा हता तेने वधारी मोटा कर्या छे. आ ग्रंथ प्रथम नव वर्ष पहेला बोरुगामना श्री संघना ज्ञान द्रव्यनी सहायथी पांचसो प्रतियोमा छपायेल छे, ते प्रतो खपी जवाथी तेमज घणा साधु-साध्वीओनी वारंवार मागणी थवाथी बीजीवार छपाववानी जरुर पडी छे, आ पुस्तक भाषांतर वाचनारा साधु-साध्वीओने भेट अपाय छे, पण महा खेद साथे अमारे जणावQ पडे छे के केटलाएक साधु-साध्वीयो केवल लोभथी एकने बदले घणी प्रतो मंगावे छे, अने मोह करीने राखी मूके छे प्रथम आवृत्तिनी प्रतो एक ज समुदायना साधु-साध्वीयोये जुदा जुदा माणसोद्वारा घणी मंगावेल छे, अने तेम करी ज्ञाननी आशातनाना भागीदार बने छे, अने बीजाओने आपी शकाती नथी माटे जेना पासे न होय अने जेने खास जरुर होय तेने ज | प्रत मंगाववानी भलामण करवामां आवे छे, बली बोरुगामना श्रीमान् श्री संघने पण वारंवार धन्यवाद आपवामां आवे छे के ज्यारे ज्यारे अमोये पुस्तक छपाववा वात करेल त्यारे त्यारे श्रीमान् बोरुगामना उदार संघे ते वातने वधावी लइ श्री ज्ञानखाताना रूपीआ पुस्तक छपाववा माटे आपीने जे उदारता बतावी छे तेने माटे श्रीमान् बोरुगामनो श्री संघ जींदगी पर्यंत अमारी स्मरणशक्ति बहार जइ शके तेम नथी, अलं विस्तरेण.
लेखक-मणिविजय