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चौमासी गतिना भोक्ता थया, इति दमदंत राजर्षि कथा. तेवी ज रीते सामायिक करनार समभाव करी सामायिक करे त्यारे ज तेनो अंतरात्मा कर्मथकी मुक्त थाय. समभाव शिवाय सामायिकना यथार्थ लाभनी भजना समजवी. आधुनीक समयमां सामाख्यान ॥ सी यिक घणां जीवो करे छे, पण ते सामायिकमां कोइ निंदा, कोइ विकथा, कोइ ठठ्ठा, कोइ मरकरी, कोइ इर्ष्या, कोइ माया, कोइ अहंता, कोइ ममता, कोइ राग-द्वेषादिक, कोइ संसारनी खटपटनी वातो करे छे. कोइ ज्ञान ध्यान करे नहि ने बीजाने करवा दे नहि. काउस्सग्ग करे नहि अने बीजाने करवा दे नहि. कोइ पुस्तक वांचता होय तेनुं सांभले नहि, ने बीजाने सांभलवा दे नहि. कोइ नवकार गणे नहि ने बीजाने गणवा दे नहि. कोइ धर्म करे नहि, ने करवा दे नहि अने पोते क्लेश 5 स्या करे ने बीजाने करावे. आवा वर्त्तनथी सामायिक करनार केवल पोताना आत्मानुं अहित ज करे छे. माटे उत्तम जीवोये सामायिक लइ मौन धारण करी ध्यान कर, पंच परमेष्ठि महाराजनी माळा गणवी. ज्ञान, ध्यान, स्वाध्याय करवो, पोते भण, बीजाने भणाववुं. महापुरुषोना जीवन चरित्रो वांचवा, के जेथी करी आत्माने वैराग्य दशा प्राप्त थाय. हास्य, ठठ्ठा, मरकरी विषय कषायना वचनो त्याग करवा. धार्मिक प्रश्नोनो अने गुरुमहाराजना पूछेला प्रश्नो शिवाय कोइने उत्तर पण आपवो नहि. तेम ज पोते बीजाने कांइपण कहेवुं पुछवं पण नहि, किंबहुना, कोह गाळ दे, ताडनतर्जन करे, निंदा षां विकथा करे तो पण चित्तमां शान्ति धारे, तेज माणस शास्त्रमां कह्या प्रमाणे नीचे मुजब फलोने मेलवी शकशे. अन्यथा नहिं. कह्युं छे के
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सामाइयं कुणतो, समभावं सावओ घडिअदुगं, आउं सुरेस बंधइ, इत्तियमित्ताइं पलिआई ॥ १ ॥
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品
र
या
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तेर
काठीयानुं
स्वरूप ॥
॥ ९॥