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________________ 55卐卐卐 हे कुलांगार ! मुनिने तें कदर्थना शुं कामे करी? हे निर्लज्ज ! ऋषि हत्यानुं महा पाप छे, तेथी काइपण भय तने न थयो ? ते वैरागी, निरागी, महात्मा छे, तेने देह उपर मूर्छा नथी, वेथी पण तने काइ शरम न आवी १ हजी प्रथमनी अवस्था तुं भुली गयो केम ? ते बलीष्ठ महात्मानुं पराक्रम केम तें रणसंग्राममां न्होतुं दीर्छ ? ते अवसरे कुतराना पेठे पूंठमां पुंछडी घाली, बाइलाना पेठे दरवाजा बंध करी घरमां पेसी गयो हतो. ते समये आ महात्माना बळने तें न्होतुं जोयु के, अत्यारे ए वैरागी निःस्पृहि महात्माने पथरा मारवानुं बळ त्हारामां आव्यु, ते वखते ते महात्माये खास दयानी ज खातर तने जीवतो रहेवा दीधो छे. वली अत्यारे पण ते मुनि त्हारा जेवा अनेकने शिक्षा करवा बलवान् छे, छतां पण पोते उपसर्गने सहन करी केवल दयानी ज खातर शांत वृत्ति राखीने रहेला छे. माटे एवा क्षमाना दरिया मुनि महाराजाने गाळ आपनार, तिरस्कार करनार, अने मारनार तने अने त्हारा जेवा कुलांगार कौरवोने धिक्कार छे के तमोए मुनि महात्माने कदर्थना करी महान् पापकर्म बांध्यु अने ते पाप कर्मना माठा विपाको नरकमां जइने भोगववा पडशे. माटे कदापि काले कोइपण मुनि महात्माने मनथी पण निंदवा भंडवा के दंडवा नहि तो पछी वचन अने कायाथी तो कहेवुज शुं ? मुनियोनी निंदा करनारनी नरक शिवाय बीजी एक पण गति नथी, माटे आत्मानुं हित इच्छनारे स्वमने विषे पण मुनि महाराजनी निंदा करवी नहि ने कदर्थना पण करवी नहि. ए प्रकारे पांडवोये दुर्योधनादिक कौरवोने शिक्षा करी. ए उपरोक्त रीते पांडवोये मुनि महाराजने बंदन, नमन, स्तवन, बहुमान कयुं अने दुर्योधनादिके गालिप्रदान ताडनतर्जन निंदनादिक कयुं तो पण मुनि महाराज तेओना उपर जरा पण राग-द्वेष नहि करता समभावी थया अने तेथी ज ते सद् *卐卐-55755
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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