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________________ 卐 चौमासी व्याख्यान ।। तेर काठीयार्नु स्वरूप॥ ॥८४॥ 29994 | नीवी, उपवास, छछ, अहमादिक तप करवाथी कर्मनी निर्जरारूप धर्म थाय छे. भगवानने वंदन, नमन, स्तवन, पूजन विगेरे करवाथी धर्म पुन्य थाय छे, परमात्मा पासे चोखा, बदाम, फल, फुल, नैवेद्य, पाइ, पैसो चडाववाथी धर्म थाय छे, तो उपरोक्त वस्तुओमां कथन करेला त्याग करवा लायक पदार्थोने त्याग करी, अंगीकार करवा लायक पदार्थोने अंगीकार करी, जीव, जयवंत धर्मिष्ट बने छे. पुन्यशाली बने छे. पुन्योदयना बंधथी मानुष देवगतिना सुखो भोगवनारो थाय छे. कर्मनी निर्जरा थवाथी अजरामर थइ शाश्वत अखंड अव्यावाध अमंद आनंदमय एकांत सुखनो भोक्ता बने छे, आवो उपदेश श्रवण करी तेरकाठीया निवारक भव्य जीवो बोध पाम्या, वैराग्य पाम्या ! निर्वेद पाम्या ! संसारथी उद्वेग पाम्या, सत्य मार्ग समजायो, विवेक जाग्यो, कर्मबंधन शिथिल थया. कइक चारित्रीया थया कइक गृहि धर्म सेवन करवावाला थया. मुनिराजने पण उपकार थवाथी बीजी जग्याए धर्मोपदेश करवा चाल्या गया. हवे भगवान महावीर महाराजा बारे पर्षदाने कथन करे छे के, आ आत्माने धर्म उदय आववो बहु ज मुशीबत छे. सहज प्रणाम थाय धर्म श्रवणना, तेमां तो तेरेकाठीया अवारनवार एटला अंतरायो लावीने होमे छे के, तेमांथी फारगत जीव थतो नथी, अने धर्म करी शकतो नथी. एटलामां जींदगी पूरी थइ जाय छे. माटे प्रमादने त्याग करी धर्मर्नु आराधन करवू ते ज भव्यजीवोने लाभकारक छे. धर्म करवानी इच्छा करनारा मनुष्योने अमूक अमूक वस्तुओ होय छे, त्यारे ज ते धर्म साधी शके छे, कारण के केटलाक कारणो धर्मना हेतुभूत छे, जेमके, पोते प्राप्त करेला व्रत नियम तप जप विशेषनो पारगामी कुलहीन माणस थइ शकतो नथी, माटे कुल पण धर्मना 1451945453 ॥ ८४ ॥ 4
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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