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________________ ya Ayg4卐g धन, कोइपण रीते भलु थतुं होय, ते देखीने अदेखा अने झेरीला तेम ज निर्गुणी जीवो, रातदिवस बल्या ज करे, आज कारण मोटुं छे, कोइनुं सारं थाय अने कोइ पोतानी पुन्याइथी पूजाय, मनाय, तेमां बलतरा करी नाहक शुं कामे शेकावू जोइये, तेनुं बगाडवा अगर तेने वगोक्वा, असत्य बोली शुं कामे बीजाने कुबुद्धि आपवी जोइये अने नाहक तेमना उपर वेर झेर करी, जूठा आळ तेमना पर शुं कामे चडाववा जोइये. आपणाथी कोइर्नु हित बने तो ठीक ने नहि बने तो शांति राखी पोताना काममां सावधानी राखी परमां पडवानुं छोडी देवू जोइये. आवी रीते जे जीव परमां प्रवेश करवो छोडी दइ, परनी निंदा करतो नथी, ते जीवने उत्तम कह्यो छे, माटे डाह्या अने सुज्ञ जीवोये परनी निंदानो त्याग करवो, परनिंदा प्राणीयोने अनर्थ करे छे. कडुं छे के, यतः - तिब्वकसायाण इह, पुरिसाणं साहुनिंदापराणं। इंदियवसाणुगाणं, नियमेणं दोगइगमणं ॥१॥ भावार्थः-इहलोकने विषे तीव्र कषाय करनाराजो तथा साधु निंदा करवामां तत्पर रहेलाओ तथा इंद्रियोने वश| वर्ति जीवो जे होय छे, तेओ नियमा निश्चय कालधर्म पामीने दुर्गतिमां जाय छे, वली पण कयुं छे के, यतः रागेण वा दोसेण वा, जो दोसे जणवयस्स भासेइ । सो हिंडइ संसारे, दुखसहस्साइ अणुहुँतो ॥२॥ __ भावार्थ:-जे कोइपण राग अगर द्वेष वडे करी बीजाना तेम ज जनपदना दोषोने बोले छे, ते हजारों दुःखनो अनुभव करतो संसारने विषे परिभ्रमण करे छे. १०
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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