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हवे शास्त्रकार महाराजा कहे छे के, धर्मनी चिंता करनारा जीवोये परनी निंदा करवी नहि. कारण के परनी निंदा करी अवर्णवाद बोलनार महापापनो भागीदार थाय छे. परनी निंदा करवाथी सामा धणी साचे वैर थाय छे तेमांथी वैर वृद्धिथी शरीरनो घात थवानो प्रसंग आवे छे अने परलोकने विषे दुर्गति थाय छे, ते तो जूदी. माटे उत्तम जीवीये परनी निंदा करवी नहि, निंदा करनार केवल असत्यवादि थाय छे, अने दुनियाना जीवोने निंदा करनारनो विश्वास उठी जाय छ, वली पण एक दिवस निंदा करी, एटले बीजे दिवसे वधारे निंदा करवानुं मन थाय छे अने एम दिनप्रतिदिन निंदानी कुटेव पडी जाय छे अने ते कुटेवथी जेम आंधलो माणस रात्रि दिवस अने खरंखोटुं जोइ शकतो नथी, तेमज निंदा करनार पण लाभ, तोटो ने भला मुंडाने देखी शकतो नथी, धर्म-अधर्मने जाणी शकतो नथी, आत्माना हित-अहितने पीछाणी शकतो नथी, सज्जन-दुर्जननी परीक्षा करी शकतो नथी अने साचुं ते म्हारं नहि गणता, मारुं ते साचुं मानी, महा कदाग्रही बने छे. आवी कुटेवथी वीतरागना स्याद्वादनी वात कोइ सांभळवामां आवी होय अने तेनो परमार्थ पोताना अज्ञानपणाथी अगर हठवादथी बराबर समजवामां न आव्यो होय तो, परिणामे मिथ्याभिमानि थाय छे अने तेथी देवने, गुरुने, धर्मने, साधुने, महापुरुषोने, पुस्तक सिद्धांतने, उत्थापे छे, तेने निंदे छे, भंडे छे, दंडे छे, खंडे छे, असत्य आक्षेपो करी तेमना उपर हडहडता असत्य कलंको चडावे छे अने तेथी उत्पन्न थयेला अघोर पापथी भव अटवीमा दीर्घकाल सुधी भटक्या करे छे पण संसारनो पार पामी शकतो नथी, माटे सुज्ञ जीवोये प्रथमथी ज पोतानी जीभने परनी निंदा करवानो अवकाश आपवो ज नहि, ने जो कदाच फक्त एक ज दिवस लगार मात्र पण अवकाश आप्यो, तो पछी जींदगी जन्मोजन्मने माटे रद थाय छे.