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________________ २६] [ द्रव्यानुभव-रत्नाकर। वक्त होय तब उसका पिता कह दिया करे कि अब तुम्हारा ही करनेका वक्त होगया सो तुम जाओ, इस रीतिसे कुछ रोज बीतनेके बाद एक दिन साहूकार अपने लड़केसे कहने लगा कि हे पुत्र ! कुछ आज दुकान पर काम है सो इसके बदले में प्रातःकाल सैर कर आना, आज इस वक्त न जायतो अच्छी बात है, इतना बचन अपने पिताका सुनकर वो कहने लगा आज इस बक्त नही जाऊंगा शुबह चला जाऊंगा। फिर वह दूकानका काम काज करता रहा, जिस बक्तमें प्रातःकाल दो घड़ीका तड़का रहा उस समय उसके पिताने उसे जगाकर कहा कि, हे पुत्र! कल तू शामके बक्त नही गया था सो इस वक्त जाकर अपना शौक पूराकर, तब बो लड़का घरसे वेश्याके यहां गया। इधर उस साहूकारने उस लड़केकी स्त्रीसे कहा कि, तू अपना शृङ्गार करके अपने घरमें अच्छी तरहसे बैठ जा और तेरा पती बाहरसे आवे उस वक्तमें तू उसका अच्छी तरहसे सत्कार आदि विनय पूर्वक बात चीत करना । इस रीतिसे समझा कर साहूकार तो अपने और धन्धेमें लगा। उधरमें जो साहूकारका पूत्र वेश्याओंके घरमें गया तो उस समय वेश्याओंको पलड़के ऊपर सोती हुई देखीतो कैसा उनका ढङ्ग हो रहा था उसीका वर्णन करते हैं कि,, शिरके केश तो विखरे ( फैले) हुये थे, आंखोंसे गोड़ आय रही थी,. कजल आंखोंमें लगा हुआ ढलका था, उससे मुंह काला हो गया था,, होठ पर पान खानेसे फेफड़ी जमी हुई थी, दांत पीले खराब लगते थे,, इस रीतिका उन वेश्याओंका रूप देखकर डांकिनके समान चित्तमें ग्लानी उत्पन्न होगई और विचारने लगा कि छी २ छी हाय, हाय कैसा मैंने लोगों में अपना नाम बदनाम कराया और हजारों लाखों रुपया बर्वाद ( नष्ट ) करे, परन्तु मेरेको आज मालूम हुआ कि इनका रूप ऐसाबुरा भयङ्कर है, केवल शामके वक्तमें ऊपरका लिफाफा बनायकर मेरा माल ठगतो थी, ऐसा विचारता हुआ वहांसे चलकर अपने घरमें आया, उस वक्त उसकी स्त्री सामने खड़ी हुई, नजर आई, उस वक्त उस लड़केने अपनी स्त्रीके स्वरूपको देखकर चित्तमें आनन्दको प्राप्त Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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