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________________ अव्यानुभव-रत्नाकर।] [ २५ आएहो यथावत बताते हैं, क्योंकि जब तक वे लोग जिज्ञासुको ग्लानो और रुचि न दरसावें, तब तक उसको यथावत बोध न होगा, इस हेतुसे वे सतपुरुष पेस्तर पदार्थ अर्थात् हर एक चीजमें ग्लानी और रुचि दिखाय कर यथावत बोध कराते हैं, सो इस जगह ग्लानी और रुचिका दृष्टान्त लिखकर दिखाते हैं क्योंकि दृष्टान्तसे द्राष्टान्त यथावत समझमें आजाता है, इसलिये प्रथम दृष्टान्त कहते हैं। . . ....... ....... - एक साहुकार था उसका लड़का वेश्या गमनमें पड़ गया अर्थात् वेश्या गमन करता था ( उसके बापने अनेक उपाय किये और जो उस लड़केके पासमें बैठने वाले अथवा और अड़ोसो पड़ोसी सगे सम्बन्धियोंको मार्फत उसको समझवाया, परन्तु वो लड़का किसीका समझाया नहीं समझता था, हजारों लाखों रुपया बर्बाद करता था, तब उसके बापने अपने दिलमें विचारा कि यह मेरा पुत्र इस रीतिसे तो न समझेगा, परन्तु इसको वेश्याकी सुहबतमें ग्लानी और इसकी स्त्रीमें इसको रुचि होय तो इसका यह व्यसन छुटे, जब तक इसको वेश्याके संग ग्लानी और अपनी स्त्रीके संग रुचि न होगी तब तक वेश्याका संग कदापि न छूटेगा, ऐसा विचार कर अपने पुत्रसे कहने लगा कि हे पुत्र तू चार छः घड़ी दिन रहा करे. उस वक्त सैर करनेको वंशक जाया कर और दुधका चोरी जानेमें लोग बीचवाले धन बहुत खाजाते हैं, इसलिये तेरेको जो शौक अच्छा लगे उस शौकको उजागर करो और किसी तरहको चिन्ता मत करो, जो तुम्हारेको रुपया खर्चको चाहिये सो रोकड़ियासे ले जाया करो, अपने 'घरमें रुपया बहुत है और इसीके वास्ते इन्सान धन पैदा करता है, कि खाना पीना ऐश मोज करना । सो तुम सब चिन्ताको छोड़कर अपनी इच्छा मूजिब ऐश मौज करो। इत्यादि अपने पुत्रको समझाय कर और आप उसको ग्लानी उपजानेके उद्यममें लगा । इस रीतिकी बातें पुत्रने सुनकर गुप्तपनेसे जो वेश्याओंके यहां जाता था सो उजागर जाने लगा, और कोई तरहकी चिन्ता न रही, और जब शामका Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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