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________________ [द्रव्यानुभव-रत्नाकर। २४] उद्यम करना वही पुरुषाकर है, इस रीतिसे खेतीके ऊपर पान सम्बाय कहें। अब विद्या पढ़नेके ऊपर भी पाँच सम्वायोंको उतारते हैं कि. कालतो बुद्धिमानोंको इस जगह ऐसा लेना चाहिये कि जिस वक्त लड़का पढ़ानेके लायक अर्थात् पाँच सात-दस वरषका होजाय, अथवा जिस कालमें जो विद्या पढ़नेका आरम्भ करे उसको काल सम्बाय कहेंगे। अब दूसरा स्वभाव सम्बाय कहते हैं मनुष्य जातिमें ही पढ़नेका, स्वभाव है और पशु आदिकोंमें नहीं, इसलिये विद्यामें मनुष्यका ही स्वभाव गिना जायगा। ३ नियत सम्वाय कहते हैं कि नियत कहता निमित्त कारण विद्या अध्ययन करानेवाला गुरू आदि जिस विद्यामें यथावत निपुण होगा उस विद्याको यथावत पढ़ावेगा। अब चौथा पूर्वकृत कहते हैं, जिस जीवने पूर्वजन्ममें विद्याके संस्कार उपार्जन किये होंगे उसी जीवको विद्याध्ययन होगा, क्योंकि देखो सैकड़ो भीलादि ग्रामीण लोग हजारों, लाखों विना विद्याके ही रह जाते हैं, क्योंकि उनके पूर्वकृत नहीं हैं, इस रीतिसे पूर्वकृत सम्वाय हुआ। अब पांचवा पुरुषाकार सम्वाय कहते हैं कि, जो मनुष्य पुरुषाकार अर्थात् उद्यम बिशेष करके पठन पाटन वाँचना पूछना परावर्तना आदि वारम्वार करते हैं उनको यथावत विद्या प्राप्त होती है, इस रीतिसे विद्या पढ़नेमें पाँच सम्वाय कहे । अब इस जगह ग्रन्थ बढ़जानेके भयसे किंचित् प्रक्रिया दिखाय दीनी है, पन्तु जो इन बातोंके जाननेवाले गुरू हैं वे लोग जिज्ञासुको हर एक चीज पर उतारनेके वास्ते पाँच सम्बायका बोध कराय देते हैं, सो वो यथावत बोध होना गुरुकी कृपा और जिज्ञासुकी बुद्धि और पुरुषार्थसे आप ही होजाता है। कदाचित् पुस्तकोंमें विस्तार भी लिखदें और गुरु यथावत समझाने वाला न मिले तो भी जिज्ञासुको यथावत वोध न होगा, इसलिये जो गुरु यथावत लिन आगमके रहस्यके जानकार हैं वे लोग जिज्ञासुकी परीक्षा करके Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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