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________________ [५ व्यानुभव-रत्नाकर । . (प्रश्न ) अजी भापतो कहते हैं परन्तु देखो तो सही कि, आगमोंके जानीकार निश्चय तथा व्यवहारको जुदा जुदा कहते आये हैं। बल्कि थोड़ेकाल पहले श्रीयसो विजयजी उपाध्याय महाराजने सोलहवें श्रीशान्तिनाथजी भगवान्की स्तुती करी है उसमें उन्होंने पृथक् पृथक् (जुदाा २) निश्चय, व्यवहार दिखाया है। फिर आप क्यों नहीं मानते हैं ? (उत्तर ) भो देवानुप्रिय, श्रीयसो विजयजी महाराजके कहनेका तुम्हारेको अभिप्राय न मालूम हुआ। जो तुम्हारेको अभिप्राय मालूम होता तो उनके कथनपर कदापि विकल्प न उठाते। देखो श्रीउपाध्यायजीने प्रथम तो निश्चय और व्यवहार जुदा २ दिखाया, और शेषमें जाकर दोनोंको एक कर दिया। वे जुदा २ समझते तो दोनोंकी एकता कदापि न करते। इसलिये उन्होंने दोनोंको मिलाकर स्याद्वाद सिद्धान्त शेषमें प्रतिपादन कर दिया। यदि तुम इस जगह ऐसी शङ्काकरो कि एक ही था तो फिर श्रीउपाध्यायजी महाराजने जुदा २ कहकर जिज्ञासुओंको क्यों भ्रममें गैर ? तो इसका समाधान हमारी बुद्धिमें ऐसा आता है कि, श्रीवीतराग सर्वशदेवकी बाणीका ही इस रीतिसे कथन है कि, पेश्तर पृथक २ कथन करके फिर एकता करना उसीका नाम स्याद्वाद है। इसलिये श्रीउपाध्याजी महाराज जुदा २ कथन करके फिर एकताकर गये। जो इस रीतिसे आचार्य लोग पदार्थोकी विवक्षा न कहेंगे तो जिज्ञासु गुरु मादिकोंको कौन माने ? इसलिये इस स्याद्वाद रहस्यकी कूची गुरुके हाथ है। गुरु योग्य जाने तो दे और अयोग्य जाने तो न दे। क्योंकि अयोग्य होनेसे अनेक अनर्थका हेतु हो जाता है। इसलिये जो जिनमतके रहस्यके जानकार हैं वे लोग आगमकी श्रेणीसे अन्य व्यवस्था नहीं करते हैं। - (प्रश्न ) अजी आप व्यवहार२ कहते हो पन्तु निश्चयवालेको जो प्राप्त है सो व्यवहारवालेको नहीं। क्योंकि जो कोई मजूरी, नौकरी, गुमास्तगीरी, इत्यादिक अनेक प्यवहार करे तो चार आना |J, आठ Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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