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________________ [ द्रव्यानुभव-रत्नाकर । ६] जो आना II), रुपया १),पांच रूपया, रोजकीपैदावारी होती है, और फाटका ( अफीमका सौदा ) के करनेवाले हैं वे हजारों लाखों एक दिनमेंही पैदा करलें । इसलिये व्यवहारमें कुछ नहीं और निश्चय ही में सब कुछ है। (उत्तर) भो देवानुप्रिय, तुम बिबेक रहित हो और बुद्धि बिचक्षणपना तुम्हारा मालूम होता है । इसलिये तुमने मालखाना मोक्ष जाना अंगीकार किया दीखे है । अरे भोले भाई कुछ बुद्धिका विचार करो कि व्यवहार क्या चीज है और इसके कितने भेद हैं। देखो कि जिस रीतिसे तुम्हारा प्रश्न है उसी रीतिके दृष्टान्तसे तेरेको उत्तर देते हैं। सो तूं चित्त देकर सुन कि, इस लौकिक व्यवहारके भी तीन भेद हैं । एक मन करके व्यवहार, दूसरा काय करके व्यवहार और तीसरा बचन करके व्यवहार । तो जो काय करके व्यवहार करनेवाले हैं । उनको तो • 1) चार आना, 1/j) छः आना ||) आना ही मजूरीका मिलता है, और जो काय और बचन करके व्यापार करते हैं उनको भी १ रुपया, २) रुपया; ५)रुपया रोज मिल जाता है । परन्तु उस काय और बचनके व्यापार में बुद्धिकी भी विशेषता है । जैसी २ बुद्धिकी विशेषता होगी वैसा ही लाभ होगा। और जो बुद्धि सहित मनका व्यवहार करने वाले हैं उनको हजारों लाखों ही एक दिनमें पैदा हो जायगा । परन्तु बुद्धिके बिना जो केवल मनका व्यवहार करनेवाले हैं उनको कुछ भी न होगा। अथवा जो मनके व्यापार करके रहित हैं उनको कदापि कुछ नहीं होगा, इसलिये व्यवहारकी मुख्यता है। बिना व्यवहारके किसी वस्तुकी प्राप्ति नहीं। इसलिये कुछ बुद्धिसे विचार करो कि जो वह हजारों लाकों रूपये एक दिनमें पैदा करनेवाला व्यक्ति बुद्धि सहित मनका व्यवहार न करें और हजारों लाखों पैदा कर ले तबती तुम्हारा निश्चयका भी कहना ठीक हो जाय । नहीं तो हमारा प्रतिपादन किया हुआ व्यवहार सिद्ध हो गया । इसलिये जिस रीति से हम ऊपर निश्चय, व्यवहार लिख आये हैं उसका मानना ठीक है नतु अन्य रीतिले । Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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