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________________ [ द्रव्यानुभव - रत्नाकर १२६ ] 1 कृत्रिम प्रतिमा है, इसलिये प्रतिमा माननेयोग्य हैं। क्योंकि देखो जैसे किसी मकान में स्त्री आदिका चित्राम होय उस जगह साधू न रहे, "क्योंकि उस जगह स्त्रीकी स्थापना है, इसरीतिसे जिनप्रतिमा भी जिनभगवान्की स्थापना होने से पूजने के योग्य हैं, सो इस स्थापनाकी "विशेष चर्चा तो हमारा किया हुआ “स्याद्वादअनुभव रत्नाकर में है उसमें देखो ग्रंथ बढ़जानेके 'भयसे इस जगह नहीं लिखते हैं, और • इसकी चर्चा और भी अनेक ग्रंथोंमें है सो उन ग्रंथोंसे जानो । द्रव्यनिक्षेप | अब द्रव्यनिक्षेपाका वर्णन करते हैं कि जिसका नाम होय और - आकार गुण होय और लक्षण मिले परन्तु आत्मउपयोग न मिले वो द्रव्यनिक्षपा है। क्योंकि देखो जैसे जीव स्वरूप जाने बिना द्रव्य जीव है, यह प्रत्यक्ष देखने में आता है, कि मनुष्यजैसा शरीर आंख, नाक, कान सूरत, शकल लक्षण आदि दीखता है, परंतु अकल अर्थात् बुद्धिके न होनेसे 'उसको लोग कहते हैं कि बिना सींग पूछका पशु है, एक देखने मात्र मनुष्य दीखता है, क्योंकि इसमें बोल, चाल, बैठक, उठक बड़े, छोटे पनेका विषेक न होनेसे पशुके समान है, इसरीतिले उपयोग के बिना जो वस्तु है सो द्रव्य है, ऐसा शास्त्रों में भी कहा है “अणुवउगो "दव्वं" यह बचन अनुयोगद्वार" सूत्रमें कहा है। और शास्त्रों में ऐसा भी कहते हैं कि—पद, अक्षर, मात्रा, शुद्ध उच्चारण करें अथवा सिद्धान्त को बांचे वा पूछें और अर्थ करें और गुरु मुखसे श्रद्धा रखखे, तौभी "निश्चय सत्ता जाने (ओलखे) बिना सर्व द्रव्य निक्ष पामें है, इसलिये भाव बिना जो द्रव्य करना है सो सव पुण्यबन्धनका हेतु है मोक्षका हेतु 'नहीं, इसलिये जो कोई आत्मस्वरूप जाने बिना करणी रूप कष्ट तपस्या करते हैं और जीव, अज़ी की सत्ता नहीं जानते उनके वास्ते भगवती सूत्र में अवृत्ती, अपयखानी कहा है। अथवा जो कोई एकली बाह्यकरनी अर्थात् किया करें है और अपने साधूपना लोगों में कहलावे है वो मृषा वादी है, क्यों कि श्री उत्तराध्यवन जीमें कहा है कि “नमुनी रण वासैर्ण DIF Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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