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________________ द्रव्यानुभव-रत्नाकर।] (ब [ १२५. र आरोप के और भी भेद दिखाते हैं कि जैसे लड़के लोग लकड़ी को लेकर दोनों पगों के बीचमें करके ज देते हैं कि हटजाओ हमारा घोड़ा आता है, ऐसा बचन है, परन्तु उन लड़कोंके पासमें कोई घोड़ेके आकारकी बस्तु वा घोडेका गुण नहीं, केवल नाम मात्र बचनसे उच्चारण करते हैं, सलिये वो लकड़ीका टुकड़ा नाम घोड़ा है । अथवा कोई पुरुष काली डोरी रस्तामें गेरकर किसीसे कहे कि सांप है, तो उस सांपका नाम श्रवण करनेसे दूसरे मनुष्यको भय लगता है, परन्तु उस काली डोरीमें सर्पका आकार और गुण कोई नहीं, परन्तु नाम सर्प होनेहीसे भयका कारण हो गया, इसलिये वो नाम सर्प है । इसरीतिसे नाम निक्षेपाका वर्णन किया ॥ .. .. स्थापनानिक्षेप अब स्थापनानिक्षपाका वर्णन करते हैं कि किसीमें किसीका आकार देखकर उसे बस्तु कहे । जैसे चित्राम अथवा काष्ट पाषाणकी मूर्ति देखें और उसको हाथी घोड़ा, गाय आदि आकार देखकर उसका नाम लेकर बोले उसका नाम स्थापना है। सो ये स्थापना निक्षपा नामनिक्षपा सहित होता है । सो स्थापना दो प्रकारकी होती है-एकतो असद्भुतस्थापना, दूसरी सद्भुतस्थापना, सो पेश्तर असद्भू तस्थापना का अर्थ करते हैं कि-वैष्णवमतमैं तो ब्याह आदिक कराते हैं तब मट्टी की डली रखकर गणेशजीकी स्थापना करते हैं। और जैनमतमें शंख वा चन्दनकी अथवा गोमतीचक्र आदिककी बिना आकारकी स्थापना रखते हैं । यह असद त स्थापना कही। - अब सद्भुतस्थापना कहते हैं कि-एकतो कृत्रिम, दूसरी अकृत्रिम । अकृत्रिम उसको कहते हैं कि जैसे नन्दीस्वरद्वीप अथवा देवलोक आदिमें जिनप्रतिमा है. किसीकी बनाईहई नहीं, अर्थात् साश्वती । कृत्रिम प्रतिमा उसको कहते हैं कि जो किसीने बनाई होय, अथवा जा इस आर्यावर्तके देशों में सब मन्दिरों में स्थापनाकी गई है, वह सब Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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