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________________ [ द्रव्यानुभव-रत्नाकर। ७० ] इसलिये केवलीके केवल ज्ञानमें तो जो पर्दाथ अर्थात् द्रव्य हैं सो देखने में आये, इसलिये केवल ज्ञानीके केवल ज्ञानमें वे पर्दाथ रूपी अर्थात् कुछ बस्तु हैं, परन्तु छद्मस्थ अर्थात् चर्मदृष्टिवालेकी द्वष्टिमें अरूपी है क्योंकि वे चर्म दृष्टि अर्थात् नेत्रोंसे नहीं दीखते इसलिये वे अरूपी हैं। क्योंकि देखो और भी एक दृष्टान्त देते हैं, जैसे वायु प्रत्यक्ष नेत्रों से नहीं दीखती और स्पर्श होने से मालूम होती है कि वायु है, दूसरे जो योगी लोग हैं उनको वायु नेत्रों के बिना योग क्रिया से प्रत्यक्ष दीखती है, तैसे ही इन पांच द्रव्य अरूपीमें भी जानना, इसलिये जिज्ञासुके समझानेके वास्ते और छद्मस्थके नेत्रोंसे न दोखा इस लिये अशुद्ध और लौकिक व्यवहारसे अरूपी कहा । इस युक्तिको मानो, जास्ती क्यों तानों छोड़ अभिमानो, सद् गुरुके बचन करो प्रमानो, जिससे होय तुम्हरा कल्यानों । ६ द्रव्य में ५ द्रव्य प्रदेशवाले हैं, एक काल द्रव्य अप्रदेशवाला है, तिसमें भी धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य असंख्यात् प्रदेशवाले हैं, और आकाश अनन्त प्रदेशवाला है, और एक जीव असंख्यात् प्रदेशवाला है सो जीव अनन्ता है पुद्गल परमाणु अनन्ता है । ६ द्रव्यमें एक धर्म, २ अधर्म, ३ आकाश, ये तीन द्रव्य तो एक एक द्रव्य हैं। और जीव द्रव्य, दूसरा पुद्गल द्रव्य, ३ काल द्रव्य, यह अनेक हैं । ( प्रश्न ) तुमने जो तीन द्रव्योंको तो एक एक कहा और तीन द्रव्योंको अनेक कहा इसका प्रयोजन क्या है । (उत्तर) भो देवानुप्रिय ! धर्म, अधर्म और आकाश, ये तीनों द्रव्य एक कहनेका प्रयोजन यही है कि यह तीनों द्रव्य एक जगह जहाँ तहां अवस्थित अनादि अनन्त भांगोसे हैं, जो प्रदेश जिस जगह अवस्थित है उसी जगह अनादि अनन्त भांगोसे अबस्थित रहेगा, और जो जिसकी क्रिया है सो बहींसे करता रहेगा, इस अपेक्षासे इनको एक २ कहा । और जीव द्रव्य है सो भव्यभी है, अभव्यभी है, कोई जाति भव्यो है, कोई सिद्ध है, कोई संसारी है कोई स्वभावमें है, कोई बिभावमें है, इस लिये अनेक कहा । Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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