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________________ द्रव्यानुभव - रत्नाकर ] [ ६e लोगभी ईश्वर को निराकार अर्थात् अरूपी मानते हैं; फिर तुम्हारा खण्डन करना क्योंकर बनेगा । ( उत्तर ) भो देवानुप्रिय ! जो तुमने कहाकि जैन शास्त्र का वाक्य तो जैनी मानेंगे, सो यह कहना तेरा बेसमझका है। क्योंकि जो वीतराग सर्वज्ञदेव त्रिकालदर्शी परमात्माने अपने ज्ञानमें देखा है, उस देखे हुए पदार्थ को शास्त्रोंमें प्रतिपादन किया है सो उसके माननेमें कोई इनकार न करेगा किन्तु मानेही गा । और जो तुमने कहा कि जो तुम्हारा पर्दाथ मौजूद है उसमें अरूपी कहने की कोई युक्ति नहीं है, यह कहना तुम्हारा बेसमझका है क्योंकि देखो परमाणुको नैयायिक आदि अरूपी कहते हैं और अनुमानसे उस परमाणुको सिद्ध करते हैं । इसलिये जो तुमने कहा कि तुम्हारी कोई ऐसी युक्ति नहीं है कि पदार्थ के रहते अरूपी कहो सो युक्ति तो परमाणुके विषय नैयायिक की तरह जान लेना, क्योंकि जैसे कार्यको देखकर कारण रूप परमाणु का अनुमान करते हैं, तैसेही पांच द्रव्यों का भी अनुमान होता है। सो हो दिखाते हैं। जीवका ज्ञानादि गुणसे अनुमान बन्धता है कि ज्ञानादि गुण कुछ है, तैसेही आकाशका जगह देना इत्यादि रीतिसे सर्व द्रव्योंका अनुमान बंधता है, सो द्रव्यों को सिद्ध तो हम पेश्तर कर चुके हैं, इस लिये यह पाँचो द्रव्य अरूपी ठहरते हैं। दूसरा जैनके इस स्याद्वाद सिद्धान्तका रहस्य नहीं जाननेसे और दुःख गर्भित, मोह गर्भित वैराग्यवालोंके धूम धमाधम मचाने ( करने ) से अच्छे पुरुषों की भी खबर नहीं पड़ती, और उस सत्पुरुषकी खबर न होनेसे विनय आदिक नहीं बनता और विनय आदिकके ही न होनेसे वह सत्पुरुष धर्म के लायक न समझ कर शास्त्र का यथावत् रहस्य नहीं कहता, इसलिये मिथ्यात्व मोहनीके ज़ोरसे अनेक तरहके संकल्प विकल्प उठते हैं । सो हे भोले भाई श्रीबीतराग परमेश्वर त्रिकालदर्शी ने केवल ज्ञान में जो पदार्थ जैसा देखा तैसा हो वर्णन किया, सो वह केवल ज्ञानीके केवल ज्ञानमें तो अरूपी कुछ बस्तु है नहीं, जो उस · केवल ज्ञानमें ही न दीख पड़ती तो उसका बर्णन ही क्योंकर करते । Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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