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________________ द्रव्यानुभव - रत्नाकर । ] [ ७१ इसी रीतिसे पुद्गल और कालमें भी समझ लीजिये, ज्ञान सुधारस पीजिये, गुरूके चरनोमें चित्त दीजिये, अपनी आत्माका कल्याण कीजिये, इसरीतिले एक अनेक जानना । ६ द्रव्यमें एक आकाश द्रव्य क्षेत्रहै और ५ द्रव्य क्षेत्रिय अर्थात् रहनेवाले हैं, निश्चय नय अर्थात् शुद्ध व्यवहारसे छओं द्रव्य अपने २ कार्यमें सदा प्रवृत्त रहते है, इसलिये छःओं द्रव्य सक्रिय हैं । परन्तु अशुद्ध व्यवहार लौकिकसे तो जोव और पुद्गल दोही द्रव्य सक्रिय हैं, परन्तु इनदो द्रव्यमें भी पुद्गल सदा सक्रिय है, और जीवद्रव्यतो संसारी पनेमें सक्रिय हैं, परन्तु मोक्ष दशा अर्थात् सिद्ध अवस्थामें अक्रिय है। बाकीके चार द्रव्य लौकिक व्यवहारसे अक्रिय हैं। निश्चय नय अर्थात् शुद्ध व्यवहार द्रव्यार्थिक नय अपेक्षा तो नित्य हैं, परन्तु पर्यार्थिक नय उत्पाद व्ययकी अपेक्षाले छओं द्रव्य अनित्यभी हैं, परन्तु अशुद्ध ब्यवहार लौकिकसे जीव और पुद्गल दोही द्रव्य अनित्य हैं, क्योंकि जीवतो चारगतिके कर्म संयोगसे जन्म, मरण आदिक विभाव दशामें अनेक सुख दुःख भोगता है, इसीलिये अनित्य है, ऐसेही पुद्गलको जानो, इसीलिये इन दोनों द्रव्योंको अनित्य कहा, बाकीके चार द्रव्य ईनकी अपेक्षाले नित्य है, परन्तु छओं द्रव्य उत्पाद वयध्रुवपनेमें सदासर्वदा सर्व्व पदार्थ परिणामीपने में परिणमें हैं। 14 इन छओं द्रव्योंमें एक जीव द्रव्य कारण है, और पांच अकारण है। कोई २ पुस्तकमें ५ द्रव्यको कारण और जीव दुव्यको अकारण कहा है सो पाँच दुव्यका कारण पना युक्तिसे सिद्ध नहीं होता है, क्योंकि पांचो द्रव्य अजीव हैं, इसलिये कारण नहीं बन सके । और बहुत जगह सिद्धान्तोमें जीवको कारण कहा है; इसलिये जीव. कारण है और ५ अकारण हैं । इन छओ द्रव्योंमें एक आकाश द्रव्य सर्व व्यापो है, और पांच द्रव्यलोक ब्यापी है । निश्चय नय अर्थात् निस्सन्देह शुद्ध व्यवहारसे तो छओं द्रयकर्ता हैं। और अशुद्ध व्यवहारसे एक जीव द्रव्य करता है, बाकी ५ द्रव्य अकर्त्ता Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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