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________________ तत्त्वार्थ सूत्र अर्थ - ज्योतिष्क देवों के पाँच भेद हैं - सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्ण तारे।। मेरूप्रदक्षिणा नित्यगतयो नृलोके ॥१४॥ अर्थ - उक्त पाँचों ज्योतिष्क देव मनुष्य लोक में हमेशा गतिशील रहते हुए मेरूपर्वत की प्रदक्षिणा करते हैं। तत्कृतः कालविभागः ॥१५॥ अर्थ - उन (गतिशील ज्योतिष्कों) के द्वारा काल का विभाग हुआ है। बहि-रवस्थिता ॥१६॥ अर्थ-मनुष्य लोक के बाहर के ज्योतिष्क देव स्थिर होते हैं। वैमानिकाः ॥१७॥ अर्थ – विमानों में रहने वाले देव वैमानिक हैं। कल्पोपन्नाः कल्पातीताश्च ॥१८॥ अर्थ - वैमानिक देव दो प्रकार के हैं - १. कल्पोपपन्न और २. कल्पातीत । उपर्युपरि ॥१९॥ अर्थ – समस्त वैमानिक देव एक साथ न रहते हुए एक-दूसरे के ऊपर ऊपर स्थित हैं। सौधर्मेशान-सनत्कुमार-माहेन्द्र-ब्रह्मलोक-लान्तकमहाशुक्र-सहसारेष्वानत-प्राणतयो-रारणा-च्युतयोनवसुप्रैवेयकेषु-विजय-वैजयन्त-जयन्ता-ऽपराजितेषु सर्वार्थसिद्धे च ॥२०॥
SR No.034154
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages62
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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