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________________ तत्त्वार्थ सूत्र अर्थ - विग्रहगति में जीव एक या दो समय तक अनाहारी रहता है । १२ सम्मूर्च्छन- गर्भोपपाता जन्म ॥३२॥ अर्थ - सम्मूर्च्छन, गर्भ और उपपात ये जन्म के तीन प्रकार । सचित्त-शीत-संवृताः सेतरा मिश्राश्चैकशस्तद्योनयः ॥३३॥ अर्थ - योनियाँ नौ प्रकार की हैं । सचित्त, शीत और संवृत तथा इनकी प्रतिपक्षभूत, अचित, उष्ण और विवृत तथा मिश्र अर्थात् सचिताचित, शीतोष्ण और संवृतविवृत । जराखण्ड - पोतजानां गर्भः ॥३४॥ अर्थ - जरायुज, अण्डज और पोतज जीवों का गर्भ में जन्म होता है । नारकदेवानामुपपातः ॥ ३५ ॥ अर्थ - नारकियों और देवों का उपपात जन्म होता है। इसका विवेचन सूत्र ३२ में किया गया है । शेषाणां सम्मूर्च्छनम् ॥३६॥ अर्थ - शेष जीवों का सम्मूर्च्छन जन्म होता है । औदारिक- वैक्रिया - ऽऽहारक- तैजस- कार्मणानि शरीराणि ॥३७॥ अर्थ - औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और ये शरीर के पाँच प्रकार हैं । परं परं सूक्ष्मम् ॥३८॥ कार्मण
SR No.034154
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages62
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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