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________________ तत्त्वार्थ सूत्र अर्थ - आगे-आगे का शरीर सूक्ष्म है । प्रदेशतो-ऽसंख्येयगुणं प्राक् तैजसात् ॥३९॥ अर्थ - प्रदेशों की संख्या की दृष्टि से तैजस से पूर्व के शरीरों का परिमाण असंख्यात गुणा होता है। अनन्त गुणे परे ॥४०॥ अर्थ - तैजस और कार्मण शरीरों के प्रदेश क्रमशः अनंतगुणा होते हैं। अप्रतिघाते ॥४१॥ अर्थ - दोनों शरीर अबाध्य (बाधा रहित) होते हैं। अनादि सम्बन्धे च ॥४२॥ अर्थ - (तैजस और कार्मण) इन दोनों शरीरों का आत्मा के साथ अनादि काल से सम्बन्ध है। सर्वस्य ॥४३॥ अर्थ – ये दोनों शरीर सभी संसारी जीवों के होते हैं। तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्थ्यः ॥४४॥ अर्थ - एक साथ एक जीव के तैजस और कार्मण से लेकर चार शरीर तक विकल्प से होते हैं । निरूपभोग-मन्त्यम् ॥४५॥ अर्थ - अंतिम अर्थात् कार्मण शरीर उपभोग रहित होता है। गर्भसम्मूर्च्छनज-माद्यम् ॥४६॥ अर्थ - गर्भज और सर्मूच्छिम जीवों का औदारिक शरीर होता है।
SR No.034154
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages62
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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