SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० स्थावर जीव हैं। तेजो- वायू द्वीन्द्रियादयश्च त्रसाः ॥१४॥ अर्थ - तेउकाय, वायुकाय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय त्रस जीव होते हैं । पंचेन्द्रियाणि ॥ १५ ॥ अर्थ – इन्द्रियाँ पाँच प्रकार की होती हैं । तत्त्वार्थ सूत्र द्विविधानि ॥ १६ ॥ अर्थ - ये पाँचों इन्द्रियाँ दो प्रकार की होती हैं । निर्वृत्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम् ॥१७॥ अर्थ - द्रव्येन्द्रिय के दो प्रकार हैं, निर्वृत्ति और उपकरण । लब्ध्युपयोगी भावेन्द्रियम् ॥१८॥ अर्थ - भावेन्द्रिय के दो प्रकार हैं, लब्धि और उपयोग उपयोगः स्पर्शादिषु ॥१९॥ अर्थ – उपयोग स्पर्शादि विषयों में होता है । स्पर्शन- रसन- घ्राण-चक्षुः - श्रोत्राणि ॥२०॥ अर्थ - स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र ये पाँच इन्द्रियाँ हैं । स्पर्श-रस- गन्ध-वर्ण- शब्दास्तेषाम् अर्थाः ॥ २१ ॥ अर्थ - स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और शब्द ये क्रमशः इन विषयों को ग्रहण करती हैं । श्रुत-मनिन्द्रियस्य ॥२२॥ अर्थ - श्रुत मन का विषय है । -
SR No.034154
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages62
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy