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________________ प्रशमरति आठ भेद हैं ॥१९८॥ द्रव्यं कषाय योगादुपयोगो ज्ञानदर्शने चेति । चारित्रं वीर्यं चेत्यष्टविधा मार्गणा तस्य ॥ १९९॥ अर्थ : द्रव्य, कषाय, योग, उपयोग, ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं वीर्य - आत्मा की ये आठ प्रकार की गवेषणाएँ हैं ॥ १९९ ॥ जीवाजीवानां द्रव्यात्मा सकषायिणां कषायात्मा । योगः सयोगिनां पुनरूपयोगः सर्वजीवानाम् ॥ २००॥ ६१ अर्थ : जीव-अजीवों को द्रव्यात्मा, कषायवालों को कषायात्मा, सयोगियों को योगात्मा तथा सभी जीवों को उपयोगात्मा (कहा जाता है ) |२००॥ ज्ञानं सम्यग्दृष्टेर्दर्शनमथ भवति सर्वजीवानाम् । चारित्रं विरतानां तु सर्वसंसारिणां वीर्यम् ॥२०१ ॥ अर्थ : सम्यग्दृष्टि वालों को ज्ञानात्मा, सर्व जीवों को दर्शनात्मा, विरतिधरों को चारित्रात्मा व सर्व जीवों को वीर्यात्मा (कहा जाता है ) ||२०१ || द्रव्यात्मेत्युपचारः सर्वद्रव्येषु नयविशेषेण । आत्मादेशादात्मा भवत्यनात्मा परादेशात् ॥ २०२ ॥ अर्थ : नय विशेष से (एक नय - दृष्टिकोण से) सभी द्रव्यों में 'द्रव्यात्मा' ऐसा व्यवहार किया जाता है । आत्मा
SR No.034150
Book TitlePrashamrati
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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