SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आर्ष विश्व आचार्य कल्याणबोधि शिक्षासमीक्षा राजस्थान राज्य पाठ्यपुस्तक मंडल ने आठवी कक्षा के हिंदी के पूरक पाठ्यपुस्तक के रूप में 'भारत की खोज' पुस्तक को स्थान दिया है। जो भारत के आदरणीय नेता व पूर्व प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू लिखित 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' का संक्षिप्त हिन्दी अनुवाद है। भारत का गौरवमय इतिहास, भारत की परम पावन संस्कृति व भारतीय जनता के सुखीसंतुष्ट जीवन की आधारशिला समान भारत के प्राचीन धर्मों के विषय में छात्रों को जानकारी मिले, यही पवित्र उद्देश्य से पाठ्यपुस्तक मंडल ने इस पुस्तक को पसंद किया होगा, ऐसा हम अनुमान कर सकते है । इस पुस्तक का अध्ययन करके हमने उस पर निष्पक्षपात चिंतन किया। हमारे छात्रों व देश के हित के लिये, हमें जो कहने योग्य लगा, उसे हमने यहाँ प्रस्तुत किया है । आशा है केन्द्रसरकार, राज्यसरकार, शिक्षामंत्री व पाठ्यपुस्तक मंडल सहित समग्र देश के मनीषी निष्पक्षपाततया इस पर विचार करेंगे, और ऐसा निर्णय करेंगे जो देश के हित के पक्ष में होगा। 'भारत की खोज' पुस्तक के चिंतनीय पहलूँ (१) वैदिक युग के आर्य मृत्यु के बाद के अस्तित्व में बहुत अस्पष्ट ढंग से विश्वास रखते थे । (पृ० २१) चिंतन : सभी वैदिक शास्त्र आत्मा, पुण्य, पाप, परलोक आदि सत्यों का प्रतिपादन दृढतापूर्वक करतें है । पूर्वजन्म, पुनर्जन्म के विषय में अनेक केस की जाँच करने के बाद अनेक आधुनिक विज्ञानी भी आत्मा व परलोक के विषय में स्पष्ट ढंग से विश्वास रखने लगे है, तो आस्तिकतासम्पन्न आर्यो के विषय में तो क्यों कहना ? (२) आर्यो का आना (पृ० १९) चिंतनः सर्वहेयधर्मेभ्य आराद्याता आर्या : - जिन्होंने सर्व पापो का त्याग किया है, उसे आर्य कहते है, ऐसी भारत के प्राच्यतम शास्त्रों ने कही हुई परिभाषा है। भारतीय प्रजा अनादि काल से अपने निष्पाप अहिंसाप्रधान जीवन के लिये सुप्रसिद्ध है । अतः आर्यो के आगमन की कल्पना उचित नहीं है। (३) वेदों की अवेस्ता से निकटता (पृ० २१) चिंतन : वेदों को आर्य मानव के द्वारा कहा गया पहला शब्द कहा, जिससे वेदों को अपौरुषेय या भगवत्प्रणीत मानने वाली भारतीय जनता की धार्मिक भावना को ठेस पहुँच रहा है। वेदों की भाषा की इरान की भाषा से तुलना की गई है, और संस्कृत की अपेक्षा अवेस्ता
SR No.034125
Book TitleArsh Vishva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyam
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages151
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy