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________________ से ज्यादा समीप बताया गया है। भारतीय प्राच्यविद्या के कितने विद्वान इस बात से सम्मत होंगे? व वेदों, जो भारतीय संस्कृति के उपहार है, उनके बारे में यह बात भारतीय संस्कृति के चाहकों को कितनी स्वीकृत होगी? ★ निर्धन और अभागे लोग एक हद तक परलोक में विश्वास करने लगते है। (पृ० २२) चिंतन : परलोक के इन्कार से विदेशों में जो भयानक हिंसा, चोरी, व्यभिचार आदि का तांडव मचा है, और भारतीय जनता अपनी नैतिकतामूलक आस्तिकता से विदेश की तुलना में कई गुना अधिक स्वस्थ, संतुष्ट व सुखी जीवन जी रही है। आप किसी भी साल की खून, बलात्कार, चोरी आदि घटनाओं की (भारत व विदेश सम्बन्धी) तुलना करोगे, तो उसका परिणाम ही इस बात का परिचायक हो जायेगा । तो आस्तिकता का सम्बन्ध निर्धनता व दुर्भाग्य से बताकर हम भारतीय विद्यार्थीओं को क्यों बनाना चाहते है ? हमारे समस्त पूर्वज, धर्मगुरु, एवं धर्मोपदेशक परमात्मा आत्मा, परलोक व पुण्य-पाप आदि में दृढ विश्वास रखते थे, तो क्यां वे निर्धन व अभागी थे? प्रत्यक्षसिद्ध वास्तविकता तो यही है कि जिन्हें परलोक पर विश्वास नहीं वे ही व्यसन, हिंसा, चोरी, व्यभिचार आदि अपराध करते है, और आखिर में न केवल निर्धन व अभागी होते है, अपितु हर तरह से बरबाद होते है। विश्व के हर अपराध के पीछे किसी न किसी प्रकार की नास्तिकता ही निहित होती है। तो नास्तिकता का समर्थन करके तथा आस्तिकता को ऐसे शब्दों से कुचलकर हम इस देश को किस दिशा में ले जाना चाहते है ? * वैदिक संस्कृति की मूल पृष्ठभूमि परलोकवादी या इस विश्व को निरर्थक मानने वाली नहीं है । (पृ० २२) चिंतन - क्यां परलोकवादी होना, इस का अर्थ यह है कि यह विश्व व यह जीवन निरर्थक है ? क्या यह प्रतिपादन भ्रमणा का प्रसार नहीं है ? 'यदि मैं किसी को मारुंगा या किसी को कष्ट पहुँचाऊंगा, तो मुझे परलोक में उसके कटु फल मिलेंगे । जैसी करनी वैसी भरनी ।' यह है परलोकवाद । जिस के आधार से मनुष्य अपराधों से मुक्त रहने की शक्ति पाता है और सुखी, स्वस्थ व नैतिक जीवन जीकर जीवन का सच्चा आनंद पाता है । परलोकवाद से ही इस जीवन की सार्थकता संभवित है, तो उससे इस विश्व के निरर्थक होने की आपत्ति कैसे आ सकती है ? अधिक दुःख की बात तो यह है कि उक्त प्रतिपादन से परम आस्तिक वैदिक संस्कृति को नास्तिक कहा गया हो, ऐसा प्रतीत होता है। ★ भारत में हर जगह मुझे एक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि मिली जिसका जनता के जीवन पर बहुत गहरा असर था । रामायण और महाभारत और अन्य ग्रन्थ भी जनता के बीच दूर दूर तक प्रसिद्ध थे । हर घटना, कथा तथा उसका नैतिक अर्थ लोकमानस पर अंकित था और
SR No.034125
Book TitleArsh Vishva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyam
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages151
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size1 MB
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