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________________ शील व बार "स्त्री-पुरुष एक ही प्राश्रम में रहें, साथ काम करे, इ तरे को देदा में और ब्रह्मचर्य रखने की कोशिष्य करें, तो इन्ने डर बद्दल है। इसमें एक हद र पश्चिम की जानदनकर नकल है। हकप्रयंट करने की पत्नी यांच्या में मप्र शाक है। मगर यह तो मेरे बारे प्रयायों के बारे में कहा जा सका है। यह बात जोरदार है, मोनिए किन्ही को अपना शिष्य नौ मनता। मम्बा करनी प्राथम में प्रायेमद जोखमों को जानते हुए भी साथी के रूप में प्राश्रम में पाये हैं। लड़के और लड़कियों को मैं अपने दन मानता है। मलिए वे बहन ही मेरे प्रयोगों में पीटे जाते हैं। सत्र प्रयोग सायम्मी परमेश्वर के नाम पर है। यह कुम्हार है और इन उके हाथ में न्ट्रिी इस तरह नीलम यार ब्रह्मार्य-पालन करने की कोशिश के प्रयोग में निरामा सानुभव महात्मा गांधी को नहीं हमा। के अनुनय के अनुसार स्त्री-पुरुष दोनों की कुल मिलाकर मान ही इमा। सबसे ज्यादा कायदा स्त्रियों को प्रा' प्रयोग करने में कुछ स्त्री-पुरुष नाकामयाब रहे, मुख गिर करके। महात्मा गांवी ने लिखा है: "प्रयोग मात्र में ठोकर, अटो खानी ही होती है। जिसमें मोर प्रने मलता है, वह प्रयोग नहीं । वह दो सर्वत्र का स्वभाव रहा वायगा। प्राश्रमवासियों के बारे में महात्मा गांबी के पास शंकाएं मादी व एक बार महाना गांवी ने सिवा : "प्राश्रम में दो गुटम्द-नाना के नाम पर पतर में विषयों का सेवन करते होगे, दे दो टीमरे, प्रत्र्यायवाले मिष्याचारी हैं। हम यहां लयात्रारी की वाट कर रहे हैं। मोर. यह सोच रहे हैं कि सत्याचारी को क्या करना चाहिए। इसलिए प्राश्रम में प्रगर ए सदी लोग कुटम्द-बावना का डग करके विषयों का मेवन करते हों, तो भी प्रार १ वी मी बाहर और नीटर से केवल कुटन-भावना का ही सेवन करठे हों, तो उसने प्राथम कृतार्थ हो जायगा। इसलिए हमें यह नहीं सोचता है कि दूसरा क्या करता है। हमें दो यही विचार करना है कि अपने लिए व एम्ब-मावना की पृष्ठभूमिका में मिदान्त क्या है, इसकी चर्चा करते हुए न्होंने कहा: "इसके साथ ही साथ इशना दो नही है कियी का महल देख कर हम पानी प्रॉड़ी न उचाई। कोई कुटम्ब-भावना से हमने का दावा करे, मगर हम अपने में यह शनि पारे दो उसके दावे की स्वीकार करते हुए भी हम तो कुटुम्ब की दुत मे दूर ही रहें। प्राश्रम में हम एक नया, और इसलिए भयंकर प्रयोग कर रहे हैं। इस कोशिश में सत्य की रक्षा करते हुए जो घुलमिल म, वे घुलमिल जाय। जो न धुलमिल सके, वे दूर रहें। हमने ऐने वर्म को कसना नहीं की है कि प्राश्रम में ममी सव तरह से स्त्री मात्र के साथ घुर्ने मिले। इस तरह घुलने-मिलने की हमने सिर्फ छूट रती है। वर्म का सेवन करते हुए बोस छूट को मे सम्ठा है, वह ने ले। मार इस छूट को मेने में जिसे धर्म सो बने का डर है, वह प्राश्रम में रहते हुए नो उसमे मो कोम दूर भाग सकता है।" इस प्रयोग में महमा मधिी एक वैज्ञानिक की मी दृढ़ता से बने थे : "हाइड्रोजन और प्राक्सीजन को मिलाने पर बदाका होना संभव है, यह जानते हुए मो रसायनशास्त्री इस प्रयोग को छोड़ थोड़े ही देने? हमारे यहां ऐसे घढाके होते रहो. किन्न इससे क्या हमा ..."सौ में पांच प्रयोग गलत साविठ हुए हो, तो उसमे क्या हमा! हम भून करने का अधिकार है। जहां से भूत होगी, यहाँ से फिर मिलने और प्रागे बढ़ेगे।" (३) बहिनों से पत्रव्यवहार : - महात्मा गांधी का पत्रव्यवहार विवाहित-अविवाहित अनेक बहिनों के साथ चलता रहा। पत्रों द्वारा दे बहिनों को मनेक प्रकार की शिजाएं देते, उनकी समस्याओं का हन करने और प्रारिमक उन्नति की बातें बठलाते। जब कभी बहन ब्रह्मचर्य प्रथवा टढ़ सम्बन्धी विषयों पर प्रश्न पूछती व वे उन्हें पूरा उत्तर देते। बहिनों के पत्रों में ऐसे प्रश्नों को छूना नाजुक था और भारत-भूमि में यह एक नया प्रयोग ही कहा -सत्याग्रह आश्रम का इतिहास पृ० ४३ -यही पृ.४३ ३-बही पृ०४४ ४-महादेव भाई की डायरी (पहला भाग) पृ. १०८. ५-यही (तीसरा भाग) पृ० ११ ६-वही (पहला माग) पृ० १०६ Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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