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________________ शील की नय बार २८ असिधार व्रत का पालन करने लगे। इस प्रकार बारह वर्ष का समय बीत गया। ऐसे समय विमल मुनि नामक कंवली चमानगरी में पधारे। उन्होंने भायी हुई परिषद् को धर्मोपदेश दिया। यहाँ जिनदास नाम सेठ भी उपस्थित थे। उसने पूछा--"मैंने रात्रि में स्वप्न में मासक्षमण के उपवासी ८४ लाख मुनिराजों को प्रतिक्षामित किया। उसका क्या फल है ?" विमल कंवली बोले- सेठ ! कौशाम्बी में विजय कुमार और विजय कुमारी रहते हैं। यह दम्पति तीन करण, तीन गोग से ग्राम चारी है। पति-पत्नी एक ही शय्या पर शयन करते हैं और उन्हें ब्रह्मचर्य पालन करते हुए बारह वर्ष हो गये हैं। एक का कृष्णपक्ष का प्रत्याख्यान है और दूसरे को शुक्लपक्ष का। वे दोनों चरम शरीरी हैं।" यह सुनकर सब विस्मित हुए। जिनदास बोला--"मैं जाकर उन्हें देखेंगा और उनकी स्तुति करूंगा।" मुनि बोले-"तुम्हारे मिलने पर वे संयम लेंगे।" जिनदास परिवार सहित कौशाम्बी पहुँच बाहर बाग में ठहरा और फिर विजय कुमार के पिता से मिलने गया। विमल केवली द्वारा कही हुई बात उससे कही। सेठ ने कुमार को बुला कर पूछा-'अब तुम्हारी क्या इच्छा है ?" कुमार बोला-"मैंने प्रण ले रखा है कि बात प्रकट होते ही संयम लेगा। अत: संयम की अनुज्ञा दें।" पिता के आग्रह पर भी कुमार अपने निश्चय से नहीं डिगा। सेठ ने अनुमति दे दी। विजय कुमार ने प्रव्रज्या ली। विजया कुमारी भी प्रवृजित हुई। दोनों को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ और दोनों मुक्त हुए। यह कथा अनेक तरह से बोधप्रद है और विवाहित जीवन के लिए निम्नलिखित मुल्यों को प्रतिष्ठित करती है : (१) लिए हुए व्रत को दृढ़ता से निभाना चाहिए। (२) पति-पत्नी एक दूसरे के व्रत को निभाने में सहधर्मी हों। R T ER (३) पति-पत्नी दोनों अन्त में ऐसी अवस्था में आ जायें कि उनका सम्बन्ध भाई-बहिन का सा हो जाय। (४) अन्त में गार्हस्थ्य से मुक्त हो दोनों पूर्ण ब्रह्मचर्य ग्रहण करें। "ईसा ने कहा है-'अपने माता-पिता, बीबी-बच्चे प्रादि को छोड़ कर मेरा अनुसरण कर।" संत टॉल्स्टॉय लिखते हैं-"स्त्री को छोड़ने के माने हैं. उससे पतित्व का नाता तोड़ देना। संसार की अन्य स्त्रियों की तरह, अपनी बहन की तरह उसे समझना जैन धर्म में भी कहा है-स्त्री, पुत्र, घर, संपति सब को छोड़ कर श्रामग्य (बार्यपास) ग्रहण करो। इस प्रादर्श के उदाहरण जैन साहित्य में काफी उपलब्ध हैं। यहाँ हम जम्ब कुमार का जीवन-गृत देते हैं, जो इस विषय में एक चरमकोटि का बोध-प्रद प्रसंग है। यह मा हम यहाँ स्वामीजी की ही कृति के आधार पर दे रहे हैं। जम्बूकुमार राजगृही के रहनेवाले थे। उनके पिता का नाम ऋषभदत्त और माता का नाम धारिणी देवी था। __एक बार भगवान महावीर के पट्टधर सुधर्मा स्वामी राजगृह पधारे। जम्बू कुमार उनके दर्शन के लिए गये। सुधर्मा के उपदेश को सन कर जम्बकमार का हृदय वराग्य से ओत-प्रोत हो गया। अपने माता-पिता की आज्ञा ले उन्होंने श्रामण्य ग्रहण करने की की और दर्शन कर घर की ओर लौट चले। जब वे अपने घर के समीप पहुंचे तो एक मकान गिर पड़ने से एक पत्थर की शिला ठीक उनके सामने आकर गिरी। उन्होंने सोचा जीवन का क्या भरोसा ? प्रव्रज्या के पहले न जाने कितने विघ्न आ सकते हैं ? मुझे यावज्जीवन के लिए ब्रह्मवर्य ग्रहण कर लेना चाहिए। ऐसा विचार, वे उसी समय सुधर्मा स्वामी के पास पहुंचे और यावज्जीवन के लिए ब्रह्मचर्य ग्रहण कर लिया। इसके बाद घर लौटे और माता-पिता से प्रव्रज्या की अनुमति मांगने लगे। माता-पिता उन्हें बिविध प्रकार से समझाने लगे पर जम्बकमार के विचार नहीं पलटं। आखिर में उन्होंने कहा-"तुम्हारी आठ कन्याओं के साथ सगाई की जा चुकी है। हमारे कहने से इतना ? गाय मंजरी : विजय सेठ विजया सेठानी को चौालियो २.. कर समाई पोपा भेला, काई सूर्व हो एक सेज मझारक । जोव भगिनी भ्रात ज्यू, शील पाले हो खांडेरी धार क ।। २-वैराग्य मंजरी : विजय सेठ विजया सेठाणी को चौढालियो पृ० २८-३४ ३-स्त्री और पुरुष पृ० ६७ Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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