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________________ भूमिका तो मानो कि उनके साथ विवाह कर बाद में रहेगी कि तुम्हारी मांगों का विवाह अन्य किसी २६ प्रव्रज्या मो। मगर तुम विवाह किए बिना ही संयम लोगे, तो हमें यह बात जीवन भर अखरती के साथ हुआ। " माता-पिता को अत्यंत दुःखी और विलाप करते हुए देख जम्बूकुमार सोचने लगे- "मैंनें र्य ग्रहण किया है, विवाह करने का परित्याग नहीं किया है । क्यों न माता-पिता की बात रख दूं ? विवाह के बाद भी मैं ब्रह्मवयं के नियम का नङ्ग नहीं करूंगा और दीक्षा मूंगा।" जम्बूकुमार ने विवाह की स्वीकृति दी । माता-पिता ने बड़े उमङ्ग से दिन निर्धारित किया और हर्षोत्सव मनाये जाने लगे । जम्बूकुमार ने सोचा- "मेरे ससुरालवालों को मेरे ब्रह्मचर्य ग्रहण करने की बात मालूम नहीं। मेरा कर्तव्य है कि इस बात को प्रकट कर दूँ ताकि मेरे माठों हो सास-ससुर और ससुरालवालों को इसका पता रहे, तथा माठ कन्याओं के ध्यान में भी यह बात का जाय। और वे अपना कर्त्तव्य सोच सकें । यदि अपने नियम की सूचना मैं उन्हें नहीं करता तो मेरो ओर से यह एक बहुत बड़े धोखे की बात होगी ।" ऐसा विचार कर जम्बूकुमार ने दूत द्वारा पाठों ससुरालों में इसकी सूचना भेज दी। समाचार पाकर आठों कन्याएं विचार में पड़ गयीं और फिर एकत्र हो विचार किया: "उधर ब्रह्मचर्य ग्रह्ण कर लिया और इबर हम सब से विवाह कर रहे हैं। मालूम होता है उनके परिणाम शिथिल हैं। यदि ब्रह्मचर्य पालन के विचार दृड़ होते तो विवाह ही क्यों करते ? माता-पिता के प्रेमवश उन्होंने हमलोगों से पाणिग्रहण करना मंजूर कर लिया तो हमलोगों के प्रेमवश वे संयम लेने का विचार भी छोड़ देंगे। यदि हम सब के प्रेम-पाश में न पड़ वें प्रत्रज्या ग्रहण करेंगे तो हम सब भी उनका साथ देंगी । हम जंबूकुमार के सिवा किसी के साथ विवाह नहीं कर सकतीं। यह हमलोगों के लिए युक्त नहीं ।" इस तरह दृढ़ निश्चय कर सब ने विवाह करने का विचार स्थिर रखा । माता-पिता से वे बोलीं : "आप फिकर न करें। हम विवाह करेंगी तो जंबूकुमार के साथ ही । इस थोड़ जीने के लिए हमें अन्य किसी के साथ विवाह नहीं कर सकतीं। यदि जंबूकुमार घर में रहते हुए शील का पालन करेंगे तो हम भी वैसा ही करेंगी। यदि वे संयम ग्रहण करेंगे तो हम भी उनका अनुसरण कर संयम ग्रहण करेंगी। यदि वे घर में रह कर गृहवास करेंगे तो वे हमारे कंत होंगे और हम उनकी कामनियाँ । उनकी इच्छा है वैसा वे करें । उसी के अनुसार हम करेंगी। हमारा प्रण है कि हम जंबूकुमार को छोड़ अन्य से विवाह नहीं करेंगी ।” : इसके बाद आठों कन्याओं का पाणिग्रहण जम्बूकुमार के साथ हुआ। विवाह की रात्रि में वे महल में गये । देवाङ्गना सदृश आठों पत्नियाँ यहाँ उपस्थित हुई। जंबूकुमार सोचने लगे इन्होंने मेरा पाणिग्रह किया है, इसलिए इनके साथ रात बिताई। इनके साथ विवाह हुआ है, इसलिए ये मेरी पत्नियाँ हैं और मैं इनका पति हूँ। पर मैं शुद्ध ब्रह्मचारी हूँ उस दृष्टि से ये मेरी माता और बहिन की तरह हैं। मैं इनके प्रति जरा मीट से नहीं देखूंगा और अपने झील में टड़ रहूंगा मुल से विवाह कर ये मेरे पास बाधी है। मेरा कर्तव्य इन्हें भी समझा कर इनके साथ ही घर से निकलूं जिससे मेरे साथ इनकी भी आत्मा का कल्याण हो । यांरो सुन्दर रूप ग्राकार, मल मूत्र नों भंडार । हाड मांस लोही क्ष्य, मांय, त्यां नें रूडी वस्तु न काय ॥ असुचि अपवित्र नों छं ठाम, यां सुं मूल नहीं म्हारे काम । रहिवो आछो नहीं त्यारें पास, यां सूं कुण करे घरवास ॥ पिण यां जोड्या छं म्हां सूं हाथ, तो हिवे श्रातो पूरी करूं रात । परणी लेखे छं म्हांरी नार, हूँ पिण यांरो भरतार ॥ पिण हूँ ब्रह्मचारी सुषमान, तिण लेखे छे मा वेन समान । तो यांयूँ माठी नजर न मालू, शीलव्रत चोखे चित्तपालूं ॥ ए मोनें परणे मो पासे आई, तो ग्राठाई ने हूँ समझाई। यां नें पिण लें निकलूं लार, ज्यूँ यारोई खेवो हुवे पार * ॥ इसके बाद जुम्बूकुमार और उन सब में बड़ा रसप्रद वार्तालाप हुआ। ये जंबूकुमार को अनेक हेतु दृष्टान्तों के द्वारा गृहवास की भोर आकर्षित करने की चेष्टा करने लगीं। जम्बूकुमार वैराग्यपूर्ण हेतु दृष्टान्तों के द्वारा वैराग्य की पिचकारियाँ छोड़ने लगे। रात भर में उन्होंने घों ही पत्रियों को संयम के लिए तैयार कर लिया। रात में प्रभव नामक चोर अपने पांच सौ साथियों के साथ चोरी करने के लिए जम्बूकुमार के महल में घुस गया था। वह दहेज में पाये हुए पन को बटोर ने लगा। तभी उसने जम्बूकुमार और उनकी नव विवाहित पक्षियों के बीच हुई बातचीत को सुना। उसका हृदय राज्य से प्लावित हो गया । उसने भी अपने साथियों सहित संयम ग्रहण करने का निश्चय किया। प्रातः सबको लेकर जम्बूकुमार अपने माता-पिता के पास आये । यह सब देखकर उनके मन में भी वैराग्य उमड़ पड़ा और इन सब ने जम्बूकुमार के साथ दीक्षा ली। जम्बूस्वामी आखिरी केवली थे। वे संयम का अच्छी तरह पालन कर सिद्ध बुद्ध और मुक्त हुए । १-मथुरा) र ११४०४८ Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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