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________________ भूमिका संत टॉलस्टॉय लिखते हैं . "मनुष्य को चाहिए कि वह संयम के महत्व को समझ ले । जो संयम अविवाहित अवस्था में मनुष्य के गौरव की अनिवार्य शर्त है, वह विवाहित जीवन में इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है। विवाहित स्त्री-पुरुष वैषियक प्रेम को शुद्ध भाई-बहिन के प्रेम में परिणत कर दें। 1 १२- भाई बहिन का आदर्श San "विवाह अपनी वैषयिकता को तुष्ट करने का एक साधन नहीं; बल्कि एक ऐसा पाप समझा जाय जिसका प्रायश्चित करना परमावश्यक है । इस पाप का इस तरह प्रायश्चित हो सकता है : " पति और पत्नी दोनों विलासिता और विकार से एक दूसरे की सहायता करें, तथा आपस में उस पवित्र सम्बन्ध की स्थापना करने की भी कोशिश करें, कि प्रेमी और प्रेमिका के बीच ।" मुक्त होने की कोशिश करें और इसमें जो भाई और बहिन के बीच होता है न इसी विचार को महात्मा गांधी ने भी दिया है : "विवाहित अविवाहित सा हो जाय।" "मुझसे कहा जाता है कि यह आदर्श अशक्य है भीर 'तुम स्त्री-पुरुष में जो एक दूसरे के प्रति भाकर्षण है, उसका खयाल नहीं करते ।' पर जिस काम-प्रेरित श्राकर्षण की ओर संकेत है मैं उसे स्वाभाविक मानने से इनकार करता हूँ। वह प्रकृति प्रेरित हो तो हमें जान लेना चाहिए कि प्रलय होने में अधिक देर नहीं है। स्पी और पुरुष के बीच का सहन बाकर्षण यह है जो भाई और बहिन माँ और बेटे, बाप और बेटी के बीच होता है। संसार इसी स्वाभाविक श्राकर्षण पर टिका है। मैं सम्पूर्ण नारी जाति को अपनी बहिन, बेटी और माँ न मानूं तो काम करना तो दूर रहे, मेरे लिए जीना भी कठिन हो जायगा । मैं उन्हें वासनाभरी दृष्टि से देखूं तो यह नरक का सीधा रास्ता होगा ।" "नहीं मुझे अपनी सारी शक्ति के साथ कहना होगा कि काम का आकर्षण पति -पत्नी के बीच भी अस्वाभाविक है ।... पति-पत्नी के बीच भी कामना - रहित प्रेम होना नामुमकिन नहीं है।" नीचे हम एक पुरानी जैन-क्या दे रहे हैं जो धाज के युग में भी नये मूल्यों की प्रतिष्ठा में सहायक होगी और जो पति-पत्नी में भाईबहिन के भाव का विचार बहुत पहले से देती भा रही है : कौशाम्बी नगरी में धनवा सेठ का लड़का विजय कुमार रहता था। एक बार उस नगरी में एक मुनि श्राये । विजय कुमार उनके दर्शन के लिए गया । मुनि ने दर्शन के लिए आए हुए लोगों को धर्मोदेश दिया। विजय कुमार उपदेश से प्रभावित हुआ और उसने यावज्जीवन के · लिए परदार का त्याग लिया। साथ ही उसने कृष्णपक्ष में स्वदार का भी पावज्जीवन के लिए त्याग किया। १ - स्त्री और पुरुष पृ० ७,२६,७६ २ - ब्रह्मचर्य (श्री०) पृ० ६७ उसी नगरी में एक दूसरा सेठ धनसार था। उसकी पुत्री का नाम विजय कुमारी था। वह बड़ी लावण्यवती और गुणवती थी। योवनावस्था आने पर विजय कुमार और विजय कुमारी का पाणिग्रहण हुआ। विजय कुमारी जैसी सुन्दर थी वैसा ही विजय कुमार था । - प्रथम रात्रि में विजय कुमारी विजय कुमार के पास आयी । तव कुमार बोला- "तीन दिन मेरे पास नहीं माना है।" कुमारी बोली"आप इस समय मुझे किस कारण से रोकते हैं ?" कुमार बोला – “मुझे कृष्णपक्ष का प्रत्याख्यान है । उसके बीतने में तीन दिन बाकी हैं ।" विजय कुमारी चिन्तित होकर बोली - "मुझे शुक्लपक्ष का प्रत्याख्यान है । श्राप दूसरा विवाह करें।" विजय कुमार बोला - "प्रिये ! सहज ही पाप से बचाव हुआ । प्रब्रह्म अनर्थ का मूल है। हम दोनों यावज्जीवन ब्रह्मचर्य का पालन करें।" विजय कुमारी बोली - "हम लोगों की यह बात छिपी कैसे रह सकेगी ? प्रकट होने पर झापको तो विवाह करना ही पड़ेगा ।" विजय कुमार बोला- “बात प्रकट होने पर दोनों संयम ग्रहण करेंगे और आत्म-शुद्धि के लिए युद्ध करेंगे। हम लोग अनन्त बार कामभोग भोग चुके। उनसे कभी तृप्ति नहीं हुई।" पति-पत्नी दोनों साथ-साथ सामायिक पौषध करते । एक ही शय्या पर सोते और एक दूसरे को भाई बहिन की दृष्टि से देखते हुए -अनीति की राह पर पृ० ७०-१ २७ ४- वही पृ० ७१ क 11-pfi fel Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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