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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८८ । .. मरू-मूर्जर जैन कवि संवित्सरि विक्रम नइ कही, चउदइ सइ असीयइ ए सही । मंगल कलस चरितु सुविसाल, घन्नराजि इम कहिय विसाल । पढइ गुणइ एक मना सही, तिहि घरि प्रावइ नवनिधि सही। इति श्री मंगल कलश चउपई समाप्त ।। प्रति -पत्र-६ । पंक्ति-१६ । अक्षर - ४८ ले०-१७वीं सदी। प्रति. अभय० (११६) अज्ञात (जयसागरोपाध्याय) (१४०) नगरकोट चैत्य परिपाटी गा० १५ सं. १४६७ आदि-देस जालंधर मति भरे, वंदिसु जिणवर चंद । .. ठामि ठामि क उतिक कलिय, विहसिय तरु बहु कंद ॥१ अन्त-सवत चउद सताणवइ (१४६७) ए, जे वंदिय जिणराय चेईहर प्रतिमा थुणिय, भगतिहि पमिय पाय ॥१४ इय सासय जे देवकुल नंदीसर पायाल अमर विमाणे चिंब जिण ते वंदउ सविकाल ॥१५ प्रति-अभय (१२०) सोमसुन्दर सूरि शि० (१४१) देव द्रव्य परिहार चौपाई गा० ४५ प्रादि-निसणउ श्रावक जिगवर भगति, तिम करिवी जिम आतम सकति । For Private and Personal Use Only
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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