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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अज्ञात पंद्रहवीं सदी [ ८७ भव भवणि रमणि मिल्हेवि कर, नाण सदसण मनि धरिउ । जिनभद्रसूरि गुरु जाणि करि. चरण रमणि लीला वरिउ । प्रति० अभय (१३८) जिन भद्रसूरि गीत गा० ९ पादि-पहिल पणमीय देव, देव तणो जु देव गाइसु गणहरु ए, जिनभद्र सूरि गुरु ए ॥१ धीणिय साह मल्हार, खेतू कुखि अवतार । गुणवइ सहगरू ए महिमा सागरू ए ॥२ अन्त- श्री जिनभद्र सूरि राइ, दीठउ पातक जाइ । सुमति सुजाण गुरु ए, नंदउ तां चिरू ए ।। प्रति० अभय. (११८) धनराज (१३९) मंगल कलश विवाहलु पद्य १७० संवत् १४८० श्रादि -परमगुरु आदि जिण नमवि पभरणेस. मंगल कलश वीवाहल ए। पुहवि मनोहरो मालव देश नामि, परिणामि रलियामणउ ए । उज्जेणी वर नयर सविसाल, पूरिय धण कण रयण खाणि । सिंधु अरिगंजणी दिल्य ! तण, भूपाल वयरसिंघ वरं नरिंदो ॥१ अन्त - इसा करमनउ सुणउ विचार, मंगल कलश विरतउ संसारि । देवलोक पंचमइ जि जाइ, भवि त्रीजइ वलि सिद्धि लहेइ। For Private and Personal Use Only
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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